मौलिक विश्लेषण क्या है

सत्तारूढ़ भाजपा ने पिछले साल अपने पूरे मंत्रिमंडल को ही बदल दिया था और मुख्यमंत्री (विजय रूपानी) की जगह पटेल मुख्यमंत्री (भूपेंद्र पटेल) बना दिया। 1 मई, 1960 को अपने गठन के बाद से गुजरात में आनंदीबेन पटेल, केशुभाई पटेल, चिमनभाई पटेल और बाबूभाई पटेल सहित कम से कम पांच पटेल मुख्यमंत्री रह चुके हैं।
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Constitution Day 2022:मौलिक विश्लेषण क्या है आजदी के बाद भारत (India) के लिए 26 नवंबर का दिन बेहद ही खास था। मौलिक विश्लेषण क्या है क्योंकि ये वो दिन था, जब देश की संविधान सभा ने वर्तमान संविधान को पूरी तरह से अपना लिया था। देश में संविधान द्वारा दिए गए मौलिक अधिकार (Fundamental Rights) हमेशा ढाल बनकर हमारे जीवन के मूलभूत अधिकार हमें प्रदान करते हैं, वहीं इसमें दिए गए मौलिक कर्तव्य हमें हमारे दायित्वों की भी याद दिलाते हैं। भारत का संविधान दिवस हर साल 26 नवंबर को मनाया जाता है। हालांकि 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की प्रक्रिया बहुत पुरानी नहीं है। कुछ समय पहले तक, 26 नवंबर को राष्ट्रीय कानून दिवस के रूप में मनाया जाता था।
संविधान दिवस का इतिहास?
भारत के प्रत्येक नागरिक के बीच संविधान के बारे में जागरूकता पैदा करने और संवैधानिक मूल्यों का प्रचार करने के लिए 2015 में 26 नवंबर को संविधान दिवस के रूप में तय किया गया था। 19 नवंबर 2015 को सामाजिक न्याय मंत्रालय ने फैसला किया कि 26 नवंबर को संविधान दिवस मनाने की परंपरा शुरू की जाएगी और तभी से इस दिन को संविधान दिवस के रूप में मनाया जाता है।
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गुजरात चुनाव नजदीक आने के साथ ही सभी राजनीतिक दल प्रभावशाली पाटीदार समुदाय को रिझाने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं। राज्य की 182 विधानसभा सीटों के चुनावों के लिए,जहां सत्ताधारी भारतीय मौलिक विश्लेषण क्या है जनता पार्टी (बीजेपी) ने 45 पाटीदारों को उम्मीदवार बनाया है, तो वहीं मुख्य विपक्षी कांग्रेस ने 42 पाटीदार उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। आम आदमी पार्टी (आप) ने भी इस समुदाय से 46 नेताओं को चुनावी टिकट दिया है।
हालांकि, 2002 के गुजरात विधानसभा चुनावों में पार्टी की जीत के बाद से प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ही आम तौर पर चुनावों के दौरान भाजपा का सबसे लोकप्रिय चेहरा बने हुए हैं, बावजूद इसके भाजपा, विपक्षी कांग्रेस और आप सभी पार्टियां राज्य में शक्तिशाली और प्रभावशाली पाटीदारों की उपेक्षा नहीं कर सकतीं, जिनमें से अधिकांश पटेल उपनाम से जाने जाते हैं।
पुरोहितों से वैदिक रीति से शादी करवाना अपराध है
In 1819, by the मौलिक विश्लेषण क्या है Act 7, the Brahmins prohibited the purification of the women. (On the marriage of the Shudras, the bride had to give her physical service at the house of Brahmin for at least three nights without going to her mother’s house.)
ब्रिटिश सरकार ने 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शूद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शूद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने पति यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी पड़ती थी।)
इस विषय पर एक फिल्म बन चुकी है। कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया स्वरूप मुझे यह भी कहा कि आप शूद्रों को कलंकित करने वाली छिपी बुराइयों से पर्दा हटाकर और भी कलंकित कर रहे हैं। कुछ हद तक आपका सोचना सही भी हो सकता है। लेकिन मेरा मक़सद केवल यह बताना है कि एक पीढ़ी का अत्याचार दूसरी-तीसरी पीढ़ी के लिए आस्था और परम्परा बनती चली आ रही है। यह परंपरा इतनी खतरनाक है कि अत्याचार एक कहानी मात्र बनकर रह जाता है और जहां अत्याचार करनेवाला देवता सिद्ध कर दिया जाता वहीं अत्याचार सहनेवाला नीच-दुष्ट पापी मान लिया जाता है। भारत में ब्राह्मणों द्वारा दुहराए जानेवाले विवाह के सारे मंत्र स्त्री विरोधी हैं। सप्तपदी और चौथी की परम्पराएँ स्त्रियों के लिए न केवल कलंक हैं बल्कि शूद्रों के लिए जीवित अपमान भी हैं। दुर्भाग्य यह है कि अपमानित होनेवाला इन परम्पराओं को ओढ़कर ही गौरव महसूस कर रहा है। ब्राह्मण मौलिक विश्लेषण क्या है इसलिए मेरी बात से बौखलाता है क्योंकि मैं उसके द्वारा प्रचारित और थोपी गई गुलामी से लोगों को मुक्त करने का अभियान चला रहा हूँ जिसका स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि ब्राह्मणों की परजीवी अर्थव्यवस्था मिटेगी। जब शूद्र उसके मंत्रों और पोथी-पत्रों को अपने जीवन में निषेध कर मौलिक विश्लेषण क्या है देगा तब या तो ब्राह्मण भूखे मरेगा या फिर मेहनत-मशक्कत करेगा। वह असल में मुझसे इसीलिए खौफ खाता है कि मैं शूद्र होने में नीचता का अनुभव नहीं करता लेकिन सदियों से बहिष्कृत, वंचित और अपमानित अपने भाई-बंधुओं से जुड़ रहा हूँ। इस जुडने से ब्राह्मण का मौलिक विश्लेषण क्या है धर्म खतरे में पड़ रहा है। उसका चातुर्वर्ण खतरे में पड़ रहा है।
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सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठ ने चुनाव आयोग को लेकर दायर याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए कहा है कि देश में एक के बाद एक केंद्र सरकार ने चुनाव आयोग की आजादी को पूरी तरह नष्ट कर दिया। 1996 से किसी भी मुख्य चुनाव आयुक्त (सीईसी) को पूरे 6 साल का कार्यकाल नहीं मिला। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि इसके लिए कोई कानून नहीं बनाया गया। इस वजह से यह खतरनाक कदम हर सरकार उठाती रही और अल्प समय के लिए मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति करती रही।
लाइव लॉ और इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक जस्टिस केएम जोसेफ की अगुआई में पांच जजों की संवैधानिक पीठ ने इस मामले की सुनवाई मंगलवार को की। सुनवाई का सिलसिला अभी जारी है।
सरकार के तर्क
इंडियन एक्सप्रेस के मुताबिक केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि संवैधानिक प्रावधान कानून बनाने के लिए संसद को बाध्य नहीं करते हैं, और न ही स्थिति ऐसी आ गई है कि सीईसी की नियुक्ति में न्यायिक दखल की जरूरत हो। उन्होंने तर्क दिया कि अदालत को केवल उन हालात में दखल देना पड़ सकता है जहां चयन में गड़बड़ हो या नागरिकों के मौलिक मौलिक विश्लेषण क्या है अधिकार प्रभावित हो रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ एजी के इन तर्कों से प्रभावित नहीं हुई। उसने कहाः आपको कुछ कदम तो उठाने ही होंगे। आपने पिछले तीन दशकों में कुछ नहीं किया, तो क्या अदालत को चुप रहना चाहिए? अगर कानून बनाने की गुंजाइश है, तो आप कब तक तर्क दे सकते हैं कि आप नहीं करेंगे। हम इस मामले को 70 साल बाद उठा रहे हैं। आप कब तक जारी रखेंगे? कहीं न कहीं कुछ तो सुधारना होगा. जमीनी स्तर पर स्थिति काफी चिंताजनक है। आप सीईसी और ईसी की स्थिति को देखिए। तीन पुरुषों के नाजुक कंधों पर इसका भार है . इसमें महत्वपूर्ण यह है एक सिस्टम को स्थापित करना है। कोर्ट ने आगे कहाः
बढ़ रही है कोर्ट की नाराजगी
सुप्रीम कोर्ट की नाराजगी तमाम मुद्दों पर बढ़ती जा रही है। हाल ही में अदालतों में जजों की नियुक्तियों को लेकर सुप्रीम कोर्ट सरकार पर कड़ी टिप्पणी कर चुकी है। उसने नोटिस भी जारी किया था। इस महीने की शुरुआत में, केंद्रीय कानून मंत्री किरन रिजिजू ने टिप्पणी की थी कि सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम उन लोगों को नियुक्त करता है जो जजों को जानते हैं और उनके सामने पेश होते हैं।
पिछले एक महीने में अलग-अलग मौकों पर, रिजिजू ने कॉलिजियम सिस्टम को 'अपारदर्शी' करार दिया है और जजों की चयन प्रणाली को भारत में एकमात्र ऐसा नियम बताया है जहां जज ही जजों की नियुक्ति करते हैं। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्रीय मंत्री की इस टिप्पणी पर कई मौकों पर जवाब दिया है।
पुरोहितों से वैदिक रीति से शादी करवाना अपराध है
In 1819, by the Act 7, the Brahmins prohibited the purification of the women. (On the marriage of the Shudras, the bride had to give her physical service at the house of Brahmin for at least three nights without going to her mother’s house.)
ब्रिटिश सरकार ने 1819 में अधिनियम 7 द्वारा ब्राह्मणों द्वारा शूद्र स्त्रियों के शुद्धिकरण पर रोक लगाई। (शूद्रों की शादी होने पर दुल्हन को अपने पति यानि दूल्हे के घर न जाकर कम से कम तीन रात ब्राह्मण के घर शारीरिक सेवा देनी पड़ती थी।)
इस विषय पर एक फिल्म बन चुकी है। कुछ लोगों ने प्रतिक्रिया स्वरूप मुझे यह भी कहा कि आप शूद्रों को कलंकित करने वाली छिपी बुराइयों से पर्दा हटाकर और भी कलंकित कर रहे हैं। कुछ हद तक आपका सोचना सही भी हो सकता है। लेकिन मेरा मक़सद केवल यह बताना है कि एक पीढ़ी का अत्याचार दूसरी-तीसरी पीढ़ी के लिए आस्था और परम्परा बनती चली आ रही है। यह परंपरा इतनी खतरनाक है कि अत्याचार एक कहानी मात्र बनकर रह जाता है और जहां अत्याचार करनेवाला देवता सिद्ध कर दिया जाता वहीं अत्याचार सहनेवाला नीच-दुष्ट पापी मान लिया जाता है। भारत में ब्राह्मणों द्वारा दुहराए जानेवाले विवाह के सारे मंत्र स्त्री विरोधी हैं। सप्तपदी और चौथी की परम्पराएँ स्त्रियों के लिए न केवल कलंक हैं बल्कि शूद्रों के लिए जीवित अपमान भी हैं। दुर्भाग्य यह है कि अपमानित होनेवाला इन परम्पराओं को ओढ़कर ही गौरव महसूस मौलिक विश्लेषण क्या है कर रहा है। ब्राह्मण इसलिए मेरी बात से बौखलाता है क्योंकि मैं उसके द्वारा प्रचारित और थोपी गई गुलामी से लोगों को मुक्त करने का अभियान चला रहा हूँ जिसका स्वाभाविक परिणाम यह होगा कि ब्राह्मणों की परजीवी अर्थव्यवस्था मिटेगी। जब शूद्र उसके मंत्रों और पोथी-पत्रों को अपने जीवन में निषेध कर देगा तब या तो ब्राह्मण भूखे मरेगा या फिर मेहनत-मशक्कत करेगा। वह असल में मुझसे इसीलिए खौफ खाता है कि मैं शूद्र होने में नीचता का अनुभव नहीं करता लेकिन सदियों से बहिष्कृत, वंचित और अपमानित अपने भाई-बंधुओं से जुड़ रहा हूँ। इस जुडने से ब्राह्मण का धर्म खतरे में पड़ रहा है। उसका चातुर्वर्ण खतरे में पड़ रहा है।