निवेशकों के लिए असली परीक्षा

भारतीय अर्थव्यवस्था के ‘अच्छे दिन अभी दूर’
भारत में भारतीय जनता निवेशकों के लिए असली परीक्षा पार्टी (भाजपा) की पूर्ण बहुमत वाली केंद्र सरकार बनने के बाद देश में ही नहीं बल्कि विश्व भर में एक उम्मीद की लहर दौड़ती दिखाई दे रही है.
लोग आस लगाए हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश में पिछले कई वर्षों से लगातार बढ़ती महंगाई और दयनीय आर्थिक स्थिति को जल्दी ही दुरुस्त करने के लिए ठोस कदम उठाएंगे.
विदेशी निवेशक, जो पिछली केंद्र सरकार के एक दशक लंबे शासन के अंतिम दिनों तक भी अपूर्ण रह गई अनगिनत परियोजनाओं और व्यापक होते भ्रष्टाचार की वजह से निराश बैठे थे, अब उत्साहित हैं कि भारत के औद्योगिक विकास में तेज़ी आएगी.
निश्चित रूप से केंद्र सरकार में इतने लंबे अरसे के बाद एक बड़ा बदलाव होने से यह उत्साह स्वाभाविक है, लेकिन क्या सिर्फ़ प्रधानमंत्री और मंत्रिमंडल बदल जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था की मूल कमज़ोरियाँ और अक्षमताएँ इतनी जल्दी दूर की जा सकती हैं?
भारतीय अर्थव्यवस्था की असलियत और संभावित बाधाओं पर एक रिपोर्ट
विश्व बैंक जैसे कई अंतरराष्ट्रीय संगठनों ने आगाह किया है कि भारतीय अर्थव्यवस्था नाज़ुक मोड़ पर खड़ी है और आने वाले वर्षों में इस नई सरकार को अत्यधिक सतर्क और विषम परिस्थितियों के लिए तैयार रहना होगा. देखिए, आँकड़े क्या कहते हैं:
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की हाल ही की रिपोर्ट दर्शाती है कि राष्ट्रों की अर्थव्यवस्था आँकने के कई मापदंडों में भारत गंभीर रूप से पिछड़ा हुआ है.
रिपोर्ट यहाँ तक कहती है कि भारत की अर्थव्यवस्था आपातकालीन दौर से गुज़र रही है. इस रिपोर्ट ने 144 देशों की आर्थिक स्थिति और भविष्य में उनकी विकास दरों की संभावनाओं को आँका है.
भारत इन देशों में 71वें स्थान पर है, जो इसी रिपोर्ट के पिछले संस्करण से 11 स्थान नीचे चला गया है.
यही नहीं, पिछले 6 वर्षों से भारत लगातार इन मापदंडों में फिसलता जा रहा है.
एशिया के दो सबसे विकासशील देशों– चीन और भारत के आर्थिक विकास को अक्सर एक स्पर्धा की तरह देखा जाता है.
2007 में भारत चीन से सिर्फ़ 14 स्थान पीछे था और अब यह फासला 43 स्थानों का हो गया है. दो दशक पहले भारत का प्रति व्यक्ति सकल घरेलू उत्पाद चीन से अधिक था, लेकिन अब चीन भारत से चार गुना अधिक धनी देश है. कौन से कारण हैं जो भारत को लगातार पीछे धकेल रहे हैं?
अच्छी विकास दर ज़रूरी
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम के अनुसार एक देश की अर्थव्यवस्था को लंबे समय तक एक अच्छी विकास दर बनाए रखने के लिए तीन चरणों से गुज़रना पड़ता है.
पहला, मूल आधारिक संरचना, यानी स्वास्थ्य और शिक्षा की मूलभूत सुविधाएं. इनके साथ ही वृहत आर्थिक स्थिति – महंगाई, राजकोषीय घाटा और आयात-निर्यात तंत्र, आदि को भी सुदृढ़ रहना चाहिए.
इन दोनों मापदंडों में भारत की स्थिति दयनीय है. इसको बदलने के लिए सरकारी व निजी संगठनों की सक्रियता, आपसी तालमेल और नौकरशाही तंत्र का सक्रिय होना आवश्यक है.
इस बुनियादी संरचना के कमज़ोर होने से कोई भी अर्थव्यवस्था देर-सवेर ज़रूर लड़खड़ा जाएगी.
भारत की कुख्यात लालफ़ीताशाही और राजनीतिक खींचातानियों को देखकर यह अनुमान लगाना मुश्किल नहीं है कि देश की अर्थव्यवस्था की नींव ही उसकी सबसे बड़ी कमजोरी है.
कृषि में तकनीक बढ़े
उदाहरण के लिए, वर्ल्ड बैंक के आकलन के अनुसार भारत में कोई भी परियोजना या व्यापार शुरू करने के लिए औसतन 12 औपचारिकताएं और एक महीने का समय लगता है.
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की 144 देशों की रैंकिंग में इस मापदंड में भारत तकरीबन सभी देशों से पीछे है.
एक और बड़ी खामी यह है कि भारत की विशाल जनसंख्या के बावजूद विभिन्न क्षेत्रों में कर्मियों की संख्या में बहुत असमानताएँ हैं.
लगभग हर कृषि-प्रधान देश धीरे-धीरे अन्य उद्योगों और उत्पादन-प्रधान अर्थव्यवस्था की ओर अग्रशील होता है.
यह प्रक्रिया बढ़ती जनसंख्या और तकनीकी विकास की देन है. भारत की पहली समस्या यह है कि वह खेती पर निर्भर देश की 54 प्रतिशत जनता को पिछले कई दशकों से पर्याप्त संरचनात्मक सुविधाएं उपलब्ध नहीं करा पाया.
यही वजह है कि देश की आधी से ज़्यादा आबादी का सकल घरेलू उत्पाद में सिर्फ़ 14 फीसदी योगदान है.
दूसरी तरफ, कम आय से परेशान और नए उद्यमों की ओर आकर्षित युवाओं को पर्याप्त शिक्षा और प्रशिक्षण मुहैया नहीं हो पा रहा है, इस कारण नए उद्योगों को सक्षम इंजीनियर, मैकेनिक, आदि नहीं मिलते.
बुनियादी सुविधाओं की कमी
बिजली, पानी, और औद्योगिक ऊर्जा जैसी बुनियादी चीज़ें भारत में वैसे भी विकट समस्याएँ हैं और नई परियोजनाओं को शुरू करने में बड़ी बाधा बनती हैं.
भारत के पास काम करने वालों की कमी नहीं है, लेकिन उनको खपाने और उनका लाभ उठाने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं हैं.
नतीजतन श्रम-सक्षमता के आंकड़े में भारत 144 देशों में 121वें स्थान पर है. यह विसंगति देश में आय असमानता और अमीर-गरीब के बीच लगातार चौड़ी होती खाई का भी कारण है.
नरेंद्र मोदी से आशाएं हैं कि वे ‘अच्छे दिनों’ को जल्दी ही ले आएंगे. गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने प्रदेश में विकास की दिशा में बहुत कार्य किए, किन्तु पूरे देश की अर्थव्यवस्था के ढांचे को बदलना इतना आसान नहीं होगा.
सिर्फ़ नई योजनाएं बनाना काफी नहीं, उनको लागू करने के लिए इन निवेशकों के लिए असली परीक्षा मूल समस्याओं पर ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी है.
निवेशकों में उत्साह
केंद्र में सरकार बदलने के बाद निवेशकों के उत्साह के कुछ संकेत दिखाई देने लगे हैं.
शेयर बाज़ार का संवेदी सूचकांक सेंसेक्स नई ऊंचाइयों को छू रहा है, लेकिन यह याद रखना होगा कि विदेशी निवेश, जो इस बढ़ोत्तरी का एक बड़ा कारण है, अमरीका और यूरोप के विकसित देशों की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करता है.
अभी उन देशों की मौद्रिक नीति नरम है और ब्याज दरें बहुत कम, जिस कारण निवेशकों और उपभोक्ताओं दोनों को पैसा आसानी से उपलब्ध है.
जैसे-जैसे विश्व इस लंबी आर्थिक मंदी के दौर से उबरेगा, विकसित देशों में ब्याज दरें बढ़ेंगी. उस समय निवेशक निश्चय ही भारत की मूल कमजोरियों पर ज़्यादा ध्यान देंगे.
सतही तौर पर भारत अपने निजी आर्थिक संकट से निकलता लगता है, लेकिन देश की विकास क्षमता और स्थिरता की असली परीक्षा अभी बाकी है.
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क्या है राजस्थान लोक परीक्षा बिल 2022? जिसपर चर्चा करते हुए भावुक हो गए गुलाबचंद कटारिया
डीएनए हिंदी: राजस्थान विधानसभा में गुरुवार को लोक परीक्षा विधेयक 2022 ध्वनि मत से पारित कर दिया गया. इस दौरान नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया भावुक हो गए. उनका गला रूंध गया. कटारिया ने कहा, कोचिंग संस्थान परिणाम के बाद 100 प्रतिशत रिजल्ट का बोर्ड लगाता है यही बीमारी की असली जड़ है. यदि मार करना चाहते हो तो यहीं करो. बाकी मन को संतुष्ट करने का काम करो तो यह गरीब बच्चे के साथ न्याय नहीं होगा.
कटारिया ने कहा, गरीब बच्चा बामुश्किल पढ़ पाता है. परीक्षा के लिए जाता है तो रोता हुआ घर लौटता है. क्या उसे देखकर दुख नहीं होता. आपने सभी पैसे वाले लोगों को नौकरियों को बेच दिया. पिछले 8 साल में जो भर्तियां हुई हैं उनकी जांच कराओ.
#WATCH | LoP in Rajasthan Assembly, Gulab Chand Kataria choked up during discussion in the House over The Rajasthan Public Examination (measures for prevention of unfair means in recruitment) Bill, 2022.
The Assembly passed the Bill through a voice vote
क्या है राजस्थान लोक परीक्षा विधेयक 2022?
राजस्थान लोक परीक्षा विधेयक 2022 नकल पर रोकथाम के लिए लाया गया बिल है. यह भर्ती में अनुचित साधनों की रोकथाम के उपाय के लिए लाया गया है. पिछले दिनों राजस्थान में रीट, कांस्टेबल जैसी परीक्षओं में पेपर लीक के मामले सामने आए थे. इसके बाद सरकार ने नकल पर रोक लगाने के लिए विधानसभा में बिल लाने का प्रस्ताव रखा.
बिल में दोषी पाए जाने पर 3 साल तक की कैद और 2 साल के लिए सार्वजनिक परीक्षाओं में शामिल होने पर रोक लगाने का प्रावधान है. विधेयक में परीक्षा एजेंसियों के साथ मिलीभगत होने पर 5-10 साल की कैद और 10 लाख रुपये से 10 करोड़ रुपये के जुर्माने का भी प्रावधान है.
बिल में नकल गिरोह में शामिल लोगों की प्रॉपर्टी कुर्क करने तक का प्रावधान किया गया है. सरकार ने विधेयक को पेश कर दावा किया कि पूर्ववर्ती भाजपा सरकार के कार्यकाल के दौरान हुईं 12 परीक्षाओं में से 5 परीक्षाओं में पेपर लीक हुए. जबकि वर्तमान सरकार के कार्यकाल में 2019 से 2022 तक लगभग 80 परीक्षाएं आयोजित की गईं जिनमें से 2 में पेपर लीक हुआ एवं 1 में धोखाधड़ी का अन्य प्रकरण होने से 3 परीक्षाएं निरस्त की गई. इससे पहले सदन ने विधेयक को प्रचारित करने के प्रस्ताव को ध्वनिमत से अस्वीकार कर दिया गया था.
सीएम सलाहकार ने गिनाईं कमियां
विधेयक पर हुई बहस के दौरान भाजपा विधायकों ने इस बिल में कई खामियां गिनाई थीं. मुख्यमंत्री के सलाहकार निर्दलीय विधायक संयम लोढ़ा ने भी इस विधेयक में कोचिंग संस्थानों पर लगाम लगाने के लिए कोई प्रावधान नहीं होने पर नाराजगी जताई है. विधायकों का कहना था कि पेपर लीक में बड़ी भूमिका कोचिंग संस्थानों की होती है. इस विधेयक
पूंजी बाजार
लोकसभा चुनाव के नतीजों में भाजपा को बहुमत मिलने की धमक बौंबे स्टौक एक्सचेंज यानी निवेशकों के लिए असली परीक्षा बीएसई में जम कर दिखी और चुनाव नतीजों के साथसाथ शेयर सूचकांक भी कुलांचें भरता हुआ कारोबार के दौरान रिकौर्ड 25,376 अंक के स्तर पर पहुंच गया.
कमाल यह रहा कि 1 घंटे के कारोबार में उत्साहित निवेशकों ने बीएसई और नैशनल स्टौक एक्सचेंज यानी निफ्टी में जम कर कारोबार किया जिस के कारण सूचकांक ने 5 प्रतिशत की जबरदस्त बढ़ोतरी दर्ज की. बाजार में यह उत्साह 16 मई को ही नहीं बल्कि इस से पहले टैलीविजन चैनलों पर प्रसारित एक्जिट पोल में भाजपा गठबंधन को बहुमत मिलने के बाद से ही देखने को मिल रहा था. शुक्रवार को बाजार 25,000 निवेशकों के लिए असली परीक्षा के पार पहुंचा जबकि इस से पहले मंगलवार को अंतिम और 9वें चरण के मतदान में 20,000 अंक को पार कर गया था.
चुनावी नतीजे की सुनामी में बाजार पिछले वर्ष 13 सितंबर से कुलांचें भर रहा है जब भाजपा ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित किया था. तब से यानी 13 सितंबर, 2013 से 16 मई, 2014 के बीच बाजार मोदी नाम के उत्साह में आएदिन रिकौर्ड बनाता और तोड़ता हुआ करीब 23 फीसदी तक उछल चुका है. इस दौरान रुपए में भी मजबूती रही और हमारी मुद्रा भी मोदी के रंग में रंगती हुई निरंतर नजर आ रही है. रुपया लंबे समय बाद मजबूती के इस स्तर पर पहुंचा है. पिछले माह महंगाई की दर भी घटी है जो बाजार के लिए अनुकूल माहौल ले कर आई. नरेंद्र मोदी से अर्थव्यवस्था में सुधार की उम्मीद से सूचकांक उड़ान भर रहा है. मोदी के लिए असली परीक्षा उम्मीदों पर खरा उतर कर अर्थव्यवस्था को मजबूत करने की है.
बीमा कंपनियों में धोखाधड़ी पर इरडा सख्त
बीमा कंपनियों में होने वाली धोखाधड़ी पर अब लगाम लग सकती है. बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण यानी इरडा इस तरह की घटनाओं पर नजर रखने के लिए एक निगरानी व्यवस्था बनाने पर विचार कर रहा है. संगठन ने दूसरी प्रक्रिया भी शुरू कर दी है.
इरडा का मानना है कि यह व्यवस्था लागू होने के बाद बीमा कंपनियों में होने वाली धोखाधड़ी की घटनाओं को नियंत्रित किया जा सकेगा. व्यवस्था निवेशकों के लिए असली परीक्षा के तहत बीमाधारक, बीमा देने वाली कंपनी और बीमा क्लेम से जुड़ी प्रक्रिया में धोखाधड़ी की संभावना वाली हर प्रक्रिया पर नजर रखी जाएगी. इस में अच्छे रिकौर्डधारी बीमाग्राहक को प्रोत्साहित करने की भी योजना है. बीमा क्षेत्र में मोटर वाहन और स्वास्थ्य से जुड़े मामलों में सर्वाधिक हेराफेरी होती है. इस तरह के बीमा से जुड़ा शायद ही कोई बीमाधारक होगा जिसे गड़बड़ी नजर न आती हो.
स्वास्थ्य बीमा में सब से ज्यादा गड़बड़ी होती है. इस लेखक का भी एक अनुभव है. पिता की आंख के औपरेशन के लिए कैशलैस कार्ड पर गाजियाबाद का एक नामी अस्पताल वर्ष 2006 में
35 हजार रुपए मांग रहा था. बीमा कंपनी युनाइटेड इंश्योरेंस को अनावश्यक पैसा नहीं भरना पड़े, इसलिए 18 हजार रुपए में एक डाक्टर से इलाज कराया. बीमा कंपनी को बिल भेजा तो उस ने चुप्पी साध ली. मामला वर्ष 2008 में कर्जन रोड स्थित दिल्ली की उपभोक्ता अदालत में गया लेकिन 2012 से फैसला लंबित है. संदेह है कि युनाइटेड इंश्योरेंस ने वहां भी जुगाड़ लगा लिया है. लेखक को लेने के देने पड़े. उस मुकदमे के लिए करीब 10 हजार रुपए और खर्च करने पड़े.
स्पष्ट है कि अस्पताल बीमा कार्ड पर मनमाने पैसे वसूलते हैं. डाक्टर और अस्पताल ऐसे फ्राड में शामिल रहते हैं. स्वास्थ्य बीमा में लगभग 95 फीसदी गड़बड़ी होती है. इसी तरह की गड़बड़ी मोटर बीमा क्षेत्र में भी होती है. आएदिन कहानियां सुनने को मिलती हैं. बीमा क्लेम में गवाहों और एजेंटों का गठजोड़ होता है जो अस्पताल और डाक्टरों की तरह मिलीभगत किए रहते हैं.
कुछ गवाह तो मोटर वाहन क्लेम के मामलों में कई जगह गवाह बनते हैं और कमीशन लेते हैं. उन का यह धंधा बन गया है. उन के पास अलगअलग पहचानपत्र और पेन कार्ड हैं. फर्जीवाड़ा के लिए जो भी आवश्यक दस्तावेज चाहिए होते हैं, उन के पास सब तैयार रहते हैं. उधर, ग्राहकों को बाजार में बीमा कंपनियों की प्रतिस्पर्धा का भी शिकार होना पड़ रहा है. उन्हें लालच दे कर फर्जी बीमा प्रदाता बन कर कंपनी बदलने की सलाह दी जा रही है जो एक और बड़ा फ्राड है. जरूरत ग्राहक के सतर्क रहने और फर्जीवाड़ा करने वाली कंपनियों के खिलाफ सख्त कार्यवाही करने की है.
विज्ञापन का फर्जीवाड़ा कर रहा कबाड़ा
विज्ञापन यानी चीजों का प्रचारप्रसार बाजार की धुरी बन रहा है. पहले किसी वस्तु की महत्ता या गुणवत्ता की कसौटी होती थी उपभोक्ता का अनुभव और खरीदे गए सामान की गुणवत्ता पर उस की प्रतिक्रिया. लोग जिस कंपनी के सामान की तारीफ करते थे उस की बाजार में मांग बढ़ती थी और वह वस्तु लोकप्रियता के शिखर पर पहुंच जाती थी. अब किसी के पास किसी सामान की तारीफ करने या सुनने की फुरसत नहीं है, इसलिए कंपनियां अपने उत्पाद के सर्वश्रेष्ठ होने का खुद ही प्रचार कर रही हैं. यह अपने मुंह मियां मिट्ठू’ बनने वाली कहावत को चरितार्थ करने वाली स्थिति है. कंपनियां विज्ञापन में अपने उत्पाद का वह गुण बताती हैं जो उपभोक्ता को प्रभावित करता है.
विज्ञापन से लगता है कि यह उत्पाद एक ही दिन में कायाकल्प कर देगा. उत्पाद खरीद के लिए लाइन लगने लगती है. खानपान अथवा सेहत से जुडे़ निवेशकों के लिए असली परीक्षा विज्ञापनों के लुभावने झांसे में उपभोक्ता जल्दी आ जाता है. विज्ञापनों में कितना भ्रामक प्रचार होता है इस का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि कई कंपनियों ने गत फरवरी में स्वीकार किया है कि उन के विज्ञापन में सचाई नहीं है. भारतीय विज्ञापन मानक परिषद यानी एएससीआई ने इस साल फरवरी में कहा कि उस से 136 विज्ञापनों की शिकायत की गई जिन की उस निवेशकों के लिए असली परीक्षा ने जांच की. 99 कंपनियों ने स्वीकार किया कि उन का दावा गलत है. विज्ञापन में अच्छा दिखाया गया सामान मानक के अनुकूल नहीं है और विज्ञापन गुमराह करने वाला है. परिषद ने कई कंपनियों के पैकेजिंग को भी गुमराह करने वाला पाया है.
कमाल यह है कि उन में 80 फीसदी से अधिक शिकायतें खाद्य वस्तुओं की पैकेजिंग को ले कर थीं. असल में कंपनियां समझती हैं कि ग्राहक को अच्छी पैकेजिंग के जरिए लुभाया जा सकता है. सामान खुलने के बाद वापसी की गारंटी नहीं होती. हर उपभोक्ता लड़ना भी नहीं जानता जिस का लाभ कंपनियां उठाती हैं. ज्यादा दिन नहीं हुए जब विज्ञापन की चोरी का एक मामला सामने आया था जिस में एक टूथपेस्ट कंपनी ने दूसरे पर आरोप लगाया कि उस ने विज्ञापन की नकल की है.
विज्ञापन और प्रचार ही है जिस की बदौलत आसाराम और रामदेव आज उद्योगपति बन गए हैं और निर्मल (कथित निर्मल बाबा) भगवान बने फिर रहे हैं. विज्ञापन एक कला है जिसे बेहद संतुलित मनोवैज्ञानिक ढंग से तैयार किया जाता है. विज्ञापन भरोसा दिलाता है जिस की आड़ में भरोसा दरअसल तोड़ा जा रहा है.
SIP Inflow: 6 माह की गिरावट के बाद बढ़ा एसआईपी में निवेश, निवेशक क्यों लगा रहे हैं पैसा?
Mutual Fund SIP: लगातार 6 महीने गिरावट के बाद अक्टूबर महीने में म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी (SIP) के जरिए निवेश बढ़ा है.
SIP: लगातार 6 महीने गिरावट के बाद अक्टूबर महीने में म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी (SIP) के जरिए निवेश बढ़ा है.
SIP: लगातार 6 महीने गिरावट के बाद अक्टूबर महीने में म्यूचुअल फंड में सिस्टमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान यानी (SIP) के जरिए निवेश बढ़ा है. अक्टूबर ने एसआईपी के जरिए कुल 7800 करोड़ रुपये का निवेश आया है. जो इस बात के संकेत हैं कि रिटेल निवेशकों के लिए रिटर्न नॉर्मल हो रहा है. बता दें कि कोरोना महामारी के दौर में लंबे समय तक निवेशकों को एसआईपी में नुकसान उठाना पड़ा. कई फंडों का 1 से 3 साल का रिटर्न निगेटिव में चला गया. हालांकि लॉकडाउन खुलने के बाद अर्थव्यवस्था को लेकर उम्मीद बेहतर हुई है, जिससे अब लॉर्जकैपव, मडकैप और स्मालकैप हर सेग्मेंट में फंड का प्रदर्शन बेहतर हुआ है.
8 महीने में 55627 करोड़ निवेश
एसोसिएशन आफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया (Amfi) के आंकड़ों के मुताबिक अक्टूबर में एसआईपी के जरिए इंडस्ट्री में 7800 करोड़ रुपये आया. सितंबर में यह आंकड़ा 7788 करोड़ रुपये का था. मार्च के बाद से सिस्टेमैटिक इन्वेस्टमेंट प्लान इनफ्लो में यह पहली निवेशकों के लिए असली परीक्षा ग्रोथ थी. लेटेस्ट डाटा के अनुसार एसआईपी रूट के जरिए इनफ्लो मौजूदा वित्त वर्ष के पहले 8 महीने में 55,627 करोड़ रुपये तक पहुंच गया . हालांकि मंथली बेसिस पर यह बढ़ोत्तरी मार्जिनल यानी बहुत निवेशकों के लिए असली परीक्षा कम है.
शेयरखान के हेड (इन्वेस्टमेंट सॉल्यूशंस) गौतम कालिया का कहना है कि एसआईपी इनफ्लो बेहतर होने का मतलब है कि रिटेल निवेशकों के लिए महौल पहले से बेहतर हुआ है. इक्विटी बाजारों में हालिया तेजी से निवेशकों का भरोसा बढ़ा है, जिससे एसआईपी में निवेश बढ़ रहा है. हालांकि एसआईपी नंबर में बढ़ोत्तरी के बाद कुछ प्रॉफिट बुकिंग देखने को मिल सकती है, जिसकी झलक नवंबर में मिली भी है.
UPSC Interview Question किसी भी पेड़ पर लगने वाला सबसे बड़ा फल कौन सा है। जानिए यूपीएससी इंटरव्यू से जुड़े ऐसे सवालों के जवाब
UPSC Interview Question यूपीएससी के इंटरव्यू में जो सवाल पूछे जा सकते हैं, उनसे कुछ मिलते जुलते सवाल यहां दिए गए हैं. इनसे आपको अंदाजा लग सकता है कि किस तरह के सवाल इंटरव्यू में पूछे जा सकते हैं.
यूपीएससी परीक्षा (UPSC Exam) के लिए कई उम्मीदवार सालों तक तैयारी करते हैं. इसके बावजूद परीक्षा के तीनों चरणों को पहले ही प्रयास में पास कर लेना आसान नहीं होता है. अगर आप IAS स्तर का इंटरव्यू देना चाहते हैं तो आपकी तैयारी भी उसी लेवल की होनी चाहिए (IAS Interview). अपने दिमाग में हर समय यह बात फिट करके रखें कि इंटरव्यू पैनल में बैठे एक्सपर्ट आपकी तार्किक क्षमता को परखने के लिए किसी भी तरह के सवाल पूछ सकते हैं (UPSC Interview).
अक्सर यूपीएससी (UPSC) के इंटरव्यू में देखने को मिलता है जहां इंटरव्यूर का सवाल तो आसान होता है लेकिन अभ्यर्थी (Applicant) जवाब देने में गलती कर बैठते हैं. यूपीएससी के इंटरव्यू में जो सवाल पूछे जा सकते हैं, उनसे कुछ मिलते जुलते सवाल यहां दिए गए हैं. जिनसे आपको अंदाजा लग सकता है कि किस तरह के सवाल इंटरव्यू में पूछे जा सकते हैं.
सवाल- इंटरव्यू को हिन्दी में क्या कहते हैं?
जवाब- इंटरव्यू को हिन्दी में साक्षात्कार कहा जाता है.
सवाल- वह निवेशकों के लिए असली परीक्षा कौन सा जीव है जो हर चीज का स्वाद जीभ से वहीं अपने पैरों से लेता है?
जवाब- तितली हर चीज का स्वाद अपने पैरों से लेती है.
सवाल- वह क्या है जो जिसका है सिर्फ वही देख सकता है और सिर्फ एक बार देख सकता है?
जवाब- सोते हुए सपना है जो जिसका है सिर्फ वही देख सकता है और एक बार देख सकता है.
सवाल- रेलवे स्टेशन में जंक्शन, टर्मिनल और सेंट्रल क्यों लिखा होता है?
जवाब- सेंट्रल नाम से पहचाने जाने वाले स्टेशन उस शहर का सबसे महत्वपूर्ण, सबसे व्यस्त और सबसे पुराना स्टेशन होता है. जंक्शन वो स्टेशन होता है जहां से तीन अलग-अलग जगहों में ट्रेन आ सकती हैं. तीन से ज्यादा ट्रैक का जहां मिलन होता है उसे जंक्शन कहा जाता है. टर्मिनल वह स्टेशन होता है जहां से आगे का रास्ता नहीं होता है मतलब ट्रैक समाप्त हो गया है.
सवाल- ऐसी कौन सी चीज है जो लोहे को खींच सकती है लेकिन रबड़ को नहीं?
जवाब- चुंबक.
सवाल- 23 मार्च को क्या हुआ था इतिहास के बारे में बताएं
जवाब- 23 मार्च को शहीद दिवस के रूप में मनाया जाता है. इस दिन भगत सिंह को आजादी के लिए अंग्रेजों ने फांसी पर लटका दिया था.
सवाल-पानी गीला क्यों होता है?
जवाब- जल में ऑक्सीजन होता है और ऑक्सीजन में नमी होती है. इसी नमी की वजह से पानी गिला होता है.