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फिक्स्ड स्प्रेड

फिक्स्ड स्प्रेड

फ़ॉरेक्स स्प्रेड बेटिंग

विदेशी मुद्रा स्प्रेड बेटिंग का एक वर्ग है स्प्रेड बेटिंग शामिल होता है कि मुद्रा जोड़े की कीमत आंदोलन पर एक शर्त ले रही। करेंसी स्प्रेड सट्टेबाजी की पेशकश करने वाली एक कंपनी आमतौर पर दो कीमतों को बोली लगाती है, और पूछती है- यह स्प्रेड कहा जाता है । ट्रेडर्स शर्त लगाते हैं कि क्या मुद्रा जोड़ी की कीमत बोली मूल्य से कम होगी या पूछ मूल्य से अधिक होगी। प्रसार जितना संकीर्ण होगा, मुद्रा जोड़ी उतनी ही आकर्षक होगी क्योंकि लेनदेन लागत, किसी व्यापार में प्रवेश करने और बाहर निकलने की लागत कम है।

विदेशी मुद्रा का लालच सट्टेबाजी को फैलाता है, और सामान्य रूप से सट्टेबाजी को फैलाता है, इसकी सादगी में निहित है। प्रत्येक स्प्रेड बेट के तीन मुख्य घटक हैं:

  1. यंत्र का फैलाव
  2. व्यापार की दिशा
  3. बाजी का आकार

फॉरेक्स स्प्रेड बेटिंग का लाभ यह है कि यह व्यापारियों को ट्रेड करते समय लीवरेज की अवधारणा का उपयोग करने की क्षमता देता है । सीधे शब्दों में कहें तो लीवरेज निवेशक को मुद्रा में दांव लगाने के लिए आमतौर पर ब्रोकरेज फर्म से पैसे उधार लेते हैं। निवेशक को केवल मार्जिन आवश्यकताओं को पूरा करने की आवश्यकता है, जो कि शर्त को वित्त करने के लिए आवश्यक पूंजी है, न कि पूरी शर्त की पूरी राशि।

उदाहरण के लिए, एक ब्रोकरेज फर्म EUR / USD जोड़ी के लिए 1.0015 पर एक बोली मूल्य और 1.0010 पर एक बोली मूल्य उद्धृत करता है। यदि आप एक व्यापारी के रूप में मानते हैं कि यूरो अमरीकी डालर की तुलना में मजबूत होगा, तो आप हर बिंदु ( पाइप ) के लिए यूरो को 0.5 € से ऊपर बढ़ा सकते हैं। यदि EUR / USD एक निश्चित अवधि के बाद $ 1.0025 पर आते हैं, तो आपको € 5 (€ 0.5 * 10 पिप्स) प्राप्त होगा। यदि यूरो की कीमत $ 1.0005 थी, तो आप अंत में € 5 खो देंगे।

स्प्रेड बेटिंग की तरह, फॉरेक्स सट्टेबाजी फैलने पर व्यापारियों को वास्तव में किसी भी मुद्रा के मालिक होने की आवश्यकता नहीं है। हालांकि, उन्हें अपने खाते में उस मुद्रा में पूंजी की आवश्यकता होगी जिसमें अंतर्निहित लाभ या हानि का श्रेय या डेबिट किया जाता है। यह मुद्रा आम तौर पर उस मुद्रा की मुद्रा होती है, जहां स्प्रेड बेटिंग सेवा स्थित होती है। उदाहरण के लिए, ब्रिटेन में एक सट्टेबाजी साइट को पूंजी के रूप में ब्रिटिश पाउंड ( GBP ) की आवश्यकता होगी ।

निवेशकों के रेडार पर लौटा क्रेडिट रिस्क फंड

डेट मार्केट में हलचल के बावजूद जानकार निवेशक क्रेडिट रिस्क फंडों पर अपने रुख पर दोबारा विचार कर रहे हैं। इसकी वजह पिछले कुछ महीनों में एए व एएए रेटिंग वाली प्रतिभूतियों का बढ़ता स्प्रेड है। विशेषज्ञों के मुताबिक, एएए व एए रेटिंग वाली प्रतिभूतियों का एक साल व तीन साल का स्प्रेड बढ़कर 100-150 आधार अंक हो गया है। ऐसी प्रतिभूतियां जारी करने वाले क्षेत्र व कंपनियों के हिसाब से स्प्रेड अलग-अलग होता है। उदाहरण के लिए विनिर्माण कंपनियों की तरफ से जारी प्रतिभूतियों के लिए यह 50 आधार अंक तक हो सकता है जबकि एनबीएफसी कंपनियों की तरफ से जारी प्रतिभूतियों के मामले में 100-150 आधार अंक।

विशेषज्ञोंं ने कहा, म्युचुअल फंड लंबी अवधि वाली एए रेटिंग की प्रतिभूतियों से नीचे नहीं उतरते, लेकिन तकनीकी तौर पर वे बीबीबी की ओर जा सकते हैं, जिसे निवेश श्रेणी वाला माना जाता है। इससे नीचे जाने के लिए फंड के ट्रस्टी की अनुमति की दरकार होती है। क्रेडिट रिस्क फंड ओपन ऐंडेड योजनाएं हैं, जो उच्च रिटर्न अर्जित करने के लिए कम रेटिंग वाली प्रतिभूतियां खरीदती हैं। ये मोटे तौर पर अपनी कुल परिसंपत्तियों का 65 फीसदी एए रेटिंग वाले या इससे कम रेटिंग वाले कॉरपोरेट बॉन्ड में लगाते हैं और ज्यादा जोखिम उठाने की इच्छा रखने वाले निवेशकों के लिए यह मोटे तौर पर उपयुक्त होता है।

मोतीलाल ओसवाल प्राइवेट वेल्थ मैनेजमेंट के प्रमुख (इन्वेस्टमेंट एडवाइजरी) आशिष शंकर ने कहा, कुछ वर्षों में इन फंडों के जरिए अच्छी कमाई हो सकती है, जो परिपक्वता पर शुद्ध प्रतिफल के मुकाबले करीब 10-20 आधार अंक ज्यादा होता है। सुंदरम एमएफ के प्रमुख (फिक्स्ड इनकम) द्विजेंद्र श्रीवास्तव ने कहा, स्प्रेड में बढ़ोतरी के साथ यहां मौके हैं। हालांकि घबराहट के चलते हाल के महीनों में इससे निकासी हुई है। विशेषज्ञोंं ने कहा, निवेश से पहले निवेशकों को योजना के पोर्टफोलियो का सावधानी से विश्लेषण करना चाहिए। इसमें कंपनी का फंडामेंटल, पुनर्भुगतान की क्षमता, पिछला रिकॉर्ड और खाता-बही में दर्ज ऋण शामिल है।

कम रेटिंग वाली प्रतिभूतियां ज्यादा ब्याज की पेशकश करती है और अगर इसकी दोबारा रेटिंग हुई तो मार्क-टु-मार्केट लाभ की संभावना बनती है। श्रीवास्तव ने कहा, निवेशकों को निचले स्तर पर निवेश का तरीका अपनाना चाहिए और फैसला लेने से पहले कंपनी पर नजर डालनी चाहिए, न कि अर्थव्यवस्था में सुधार व रेटिंग में बदलाव की संभावना को अपना आधार बनाना चाहिए। अगर दो फंड हाउस के अपने-अपने पोर्टफोलियो का 40 फीसदी एएए से कम रेटिंग वाली प्रतिभूतियां हैं तो उस पोर्टफोलियो में निवेश करना चाहिए जो 20-30 प्रतिभूतियों में फैला हो, न कि 10 प्रतिभूतियों में निवेश किया गया हो।

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कैसे दूर हों पीएफ के इक्‍व‍िटी निवेश में जोखिम की आशंकाएं, इस विषय पर क्‍या कहते हैं बाजार के जानकार

क्या प्रोविडेंट फंड के इक्विटी निवेश से मिलने वाला अतिरिक्त फायदा इसके खतरों की तुलना में सही है या नहीं? आंकड़े बतलाते हैं कि असल रिस्क इक्विटी के बजाए फिक्स्ड इनकम में है। जानिये इस मसले पर क्‍या कहते हैं विशेषज्ञ.

धीरेंद्र कुमार, नई दिल्‍ली। कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) में इक्विटी निवेश को शामिल करने की बहस सिरे से खारिज हो गई है। कुछ दिन पहले ईपीएफओ निवेश डेटा संसद में रखा गया। इसके मुताबिक इक्विटी में कुल निवेश 1.59 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर 2.27 लाख करोड़ रुपये हो गया। इसमें लाभ की रकम 67,619 करोड़ रुपये है। ये सुनने में अच्छा लगता है। पर ये आंकड़ा इस पूरे निवेश के लाभ का असल रेट नहीं बताता, और यही बात हमारे जानने की है।

क्‍या अतिरिक्त फायदा खतरों की तुलना में सही है

बहस का विषय यह है कि क्या इक्विटी निवेश से मिलने वाला अतिरिक्त फायदा इसके खतरों की तुलना में सही है या नहीं? निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए आपको दोनों हिस्सों से मिलने वाले वार्षिक लाभ का रेट चाहिए। फिक्स्ड इनकम के हिस्से का रिटर्न-रेट पता करना आसान है- ये 6.5 और 7.5 प्रतिशत के बीच होना चाहिए। इक्विटी के मामले में मुश्किल इसलिए होती है, क्योंकि इसके डेटा का विस्तृत विवरण आम लोगों के लिए जारी नहीं किया जाता।

खरा नहीं उतरते ये अनुमान

इसका पता करने के लिए मैंने तर्क के आधार पर अंदाजा लगाया और इक्विटी के हिस्से का मोटा-मोटा हिसाब बनाया। वर्ष 2015-2019 में 39,662 करोड़ रुपये, 2019-20 में 31,501 करोड़ रुपये, 2020-21 में 32,070 करोड़ रुपये, 2021-22 में 43,568 करोड़ रुपये और 2022-23 के पहले तीन महीनों में 12,199 करोड़ रुपये का निवेश किया गया। मान लेते हैं कि इनमें से हर एक अवधि में निवेश, एसआइपी स्टाइल में, हर महीने एक जैसा किया गया होगा। हालांकि, बाद की चार अवधियों के लिए शायद ये आंकड़ा काफी सटीक बैठे। मगर 2015-19 में मासिक निवेश शायद एक बराबर न रहकर बढ़ता गया।

लाभ का सालाना रेट 13.6 प्रतिशत

इन अनुमानों के आधार पर, मैंने एक स्प्रेड-शीट बनाई है जिसका XIRR फंक्शन दिखाता है कि लाभ का सालाना रेट 13.6 प्रतिशत रहा। ये कतई बुरा नहीं है। खासतौर पर फिक्स्ड इनकम वाले हिस्से के कमजोर रिटर्न के मुकाबले। जैसा कि मैंने पहले कहा कि लाभ की असल दर कुछ ज्यादा ही रही होगी। 2015-19 के लिए थोड़ा अलग तरीका अपनाएं (जो असल में हुआ), तो बढ़ते हुए मासिक निवेश की गणना करने पर लाभ का नतीजा एक प्रतिशत ज्यादा ही निकलेगा, जो इस बहस में मेरी बात और साबित ही करता है।

ऐसे मिलेगा सही जवाब

कर्मचारी भविष्य निधि संगठन को इस आंकड़े की गणना करनी चाहिए और समय-समय पर जारी करते रहना चाहिए। इससे इक्विटी के जोखिम को लेकर जताई जा रही चिंताओं का सही जवाब मिलेगा। पूरे लाभ का आंकड़ा जारी करने से बात नहीं बनेगी। अगर मार्केट तेजी से गिरता है तो पूरा लाभ घट जाएगा। हालांकि, अब से सालाना लाभ का रेट बेहतर ही रहेगा और ईपीएफओ के लाभ में फिक्स्ड इनकम के हिस्से से कहीं ऊपर होगा। इसका सबसे तर्कसंगत नतीजा ये निकाला जा सकता है कि ईपीएफ में इक्विटी का प्रतिशत ज्यादा होना चाहिए।

असल रिस्क इक्विटी के बजाए फिक्स्ड फिक्स्ड स्प्रेड इनकम में

डेटा दिखाता है कि असल रिस्क इक्विटी के बजाए फिक्स्ड इनकम में है। फिक्स्ड इनकम का हिस्सा शायद ही कभी महंगाई के साथ-साथ चल पा रहा है। फिक्स्ड इनकम की आपकी रिटायरमेंट बचत की असल (मंहगाई से एडजस्ट की फिक्स्ड स्प्रेड गई) ग्रोथ बुनियादी तौर पर शून्य है। ये रिटायर होने वालों को असल रिस्क से रूबरू कराता है।

इक्विटी का अनुपात बढ़ाना ही सही

ईपीएफ निवेश दशकों से किए जा रहे हैं। इस लंबे समय के दौरान इक्विटी के रिस्क और रिवार्ड का संतुलन साफ तौर पर इक्विटी के पक्ष में है और फिक्स्ड इनकम के लिए बड़े रूप से नकारात्मक है। अगर आप सिर्फ डेटा देखें तो इक्विटी का अनुपात बढ़ाना कर्मचारियों की भलाई का सबसे अच्छा तरीका होगा। जितना जल्दी भारतीय बचतकर्ता और रिटायरमेंट की बचत मैनेज करने वाले लोग इसे समझ जाते हैं और इसकी ख़ूबियों को स्वीकार कर लेते हैं, उतना ही ये सबके लिए बेहतर होगा।

(लेखक वैल्यू रिसर्च आनलाइन डाट काम के सीईओ हैं, ये उनके विचार हैं।)

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