कई समय सीमा विश्लेषण

IIT JEE preparation 2023 Tips: कैसे शुरू करें IIT JEE की तैयारी, जेईई क्रैक करने के लिए टिप्स और ट्रिक
अच्छी तैयारी किसी को भी सफलता की ओर ले जाती है और इसके लिए एक निश्चित रणनीति की जरूरत होती है. प्रतिष्ठित संस्थानों में प्रवेश पाने के इच्छुक उम्मीदवारों के मन में पहला सवाल यह होता है कि जेईई मेन की तैयारी कैसे करें, इसे लेकर आज हम विस्तार से बात करेंगे.
IIT JEE preparation Tips: IIT JEE निस्संदेह सबसे चुनौतीपूर्ण परीक्षाओं में से एक है, इसके लिए छात्रों को स्कूल के बाद कड़ी मेहनत करने का समय आता है. यह एक ऐसी परीक्षा है जिसमें पूरी लगन के साथ स्मार्टनेस की आवश्यकता होती है. आईआईटी में कुछ हजार सीटों के लिए हर साल लगभग 10 लाख छात्र जेईई मेन्स के लिए रजिस्ट्रेशन कराते हैं.
जेईई मेन्स के पहले चरण में चयनित होने वाले छात्र जेईई एडवांस्ड में बैठने के पात्र होते हैं. यह एक लंबी प्रक्रिया है, जिसके लिए कई स्क्रीनिंग चरणों की आवश्यकता होती है. जो उम्मीदवार भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) में प्रवेश लेना चाहते हैं, उन्हें परीक्षा में शामिल होने से पहले अच्छी तरह से तैयार होना चाहिए. ज्वाइंट एंट्रेंस एग्जामिनेशन (JEE) की तैयारी 10वीं कक्षा की बोर्ड परीक्षा पास करने के बाद शुरू हो जाती है. अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री प्राप्त करने का लक्ष्य रखने वाले छात्रों को कक्षा 11 में विज्ञान का विकल्प चुनना चाहिए. यह एक छात्र के जीवन में एक महत्वपूर्ण मोड़ है, कक्षा 12 के पाठ्यक्रम में सिखाई गई अवधारणा केवल कक्षा 11 में आपने जो सीखा है उसका एक विस्तार है. इसलिए, यदि आप JEE के माध्यम से इसे बनाने के लिए प्रतिबद्ध हैं, तो जल्दी शुरू करें.
आइए जानें कि कक्षा 11 से आईआईटी जेईई की अच्छी तैयारी के लिए एक छात्र को क्या करना चाहिए
1. एक स्टडी शेड्यूल बनाएं
जेईई की तैयारी करने के लिए आपको पूरी लगन और मेहनत के साथ करना होगा. ऐसे में यह कहना अनिवार्य है कि आईआईटी में जाने के इच्छुक उम्मीदवारों को पढ़ाई से पहले सभी बातों की जानकारी होने के साथ पढ़ाई के लिए पूरी शेड्यूल तैयार करने की जरूरत है. जिससे आपको ये पता रहेगा कि आपको कब कैसे पढ़ाई करना है. हलांकि बिना मन के पढ़ाई करने से छात्रों को उस विषय को समझने में वक्त लगेगा. ऐसे में जरूरी है कि आप लगातार पढ़ाई करने से उब रहे हैं तो कुछ टाइम पढ़ाई को ब्रेक भी दें और मनोरंजन के लिए गेम खेल या जो रूची हो वो पहले करें.
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2. अपने बारे में समझने के लिए SWOT विश्लेषण करें
जेईई पाठ्यक्रम थोड़ी कठीन है. लेकिन आपको अपने लक्ष्यों के प्रति हमेशा स्मार्ट दृष्टिकोण अपनाना चाहिए. एसडब्ल्यूओटी विश्लेषण आपको अपनी ताकत, कमजोरी, खतरे और अवसर को समझने में मदद करता है. एक बार जब आप अपनी कमजोरियों के बारे में स्पष्ट विचार कर लेते हैं, तो आप जान जाते हैं कि आपको कहां अधिक काम करना है. यदि आप किसी विशेष विषय में अच्छे हैं, जैसे गणित, तो आप जानते हैं कि आप इसे अपनी ताकत के रूप में उपयोग कर सकते हैं और उस भाग में अधिकतम अंक प्राप्त कर सकते हैं.
3. आईआईटी जेईई के लिए अध्ययन सामग्री इकट्ठा करें
एनसीईआरटी की किताबों से अपना कॉन्सेप्ट तैयार करना जेईई की तैयारी के लिए अपनी नींव तैयार करने का सबसे अच्छा तरीका है. लेकिन, अगर आप दस लाख छात्रों के खिलाफ प्रतिस्पर्धा कर रहे हैं तो अकेले एनसीईआरटी पर्याप्त नहीं है. आपको अध्ययन सामग्री से मदद लेने की आवश्यकता है जो आपके पाठ्यक्रम को व्यापक रूप से कवर करती है.
4. कोचिंग संस्थानों के शिक्षकों की मदद लें
इसमें कोई संदेह नहीं है कि स्कूल आपकी तैयारी शुरू करने के लिए सबसे अच्छी जगह है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है. कोचिंग संस्थान छात्रों को अध्ययन सामग्री, योजना और नियमित संशोधन में मदद करते हैं. जेईई की तैयारी के लिए अपनी कोचिंग शुरू करने का सही समय ग्यारहवीं कक्षा है. यह वह समय है जब आपको गणित, भौतिकी और रसायन विज्ञान में नई और पेचीदा अवधारणाओं से परिचित कराया जाता है. एक अच्छा कोचिंग संस्थान कठिन अवधारणाओं को सरल तरीकों से समझने में आपकी सहायता करेगा. नियमित विषय-वार परीक्षणों के साथ वे सुनिश्चित करते हैं कि आप सीमित समय सीमा के भीतर विभिन्न प्रकार के प्रश्नों को हल करने में सक्षम हैं.
5. अपने दृष्टिकोण के अनुरूप रहें
जेईई की तैयारी के दौरान सबसे चुनौतीपूर्ण हिस्सा प्रेरित और सुसंगत रहना है. एक स्कूल जाने वाले छात्र के लिए, दिन-ब-दिन एक शेड्यूल बनाए रखना मुश्किल होता है. जब भी आपको हार मानने का मन करे तो याद रखें कि अगर आप हार मान लेते हैं तो आपके लक्ष्य कभी पूरे नहीं होंगे.
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पाकिस्तानी ड्रोन ने भारतीय सीमा में आसमान से बरसाए नोट और हथियार, जांच में जुटी सुरक्षा एजेंसी…
Image Credit - ANI
जम्मू | Pakistani Drone: पाकिस्तान अपनी करतूतों से बाज नहीं आ रहा है। अब उसने जम्मू कश्मीर में जम्मू के सांबा जिले में ड्रोन के जरिए भारतीय सीमा में आसमान से नोट बरसाए हैं। जिसके बाद भारतीय सुरक्षा एजेंसियां इन नोटों की जांच में जुट हुई है। सांबा एसएसपी के मुताबिक, सुबह 6 बजे के आसपास स्थानीय से सूचना मिली कि एक संदिग्ध बैग पड़ा हुआ है। इसे खोलने पर 5 लाख रुपए, 2 चाइनीज पिस्तौल, 4 मैगजीन (60राउंड), डेटोनेटर, 2 IED बरामद हुई है। यह ड्रोन ड्रॉपिंग से जुड़ा मामला लग रहा है इसे किसी गंभीर घटना को अंजाम देने के लिए किया गया है।
Pakistani Drone: जानकारी के अनुसार, पाकिस्तानी ड्रोन ने सांबा के विजयपुर में एक पैकेट गिराया है जिसमें भारतीय नोटों के कई बंडल मिले। ड्रोन ने भारतीय सीमा में घुसपैठ कर ये पैकेट विजयपुर में सीमा के पास एक खेत में गिराया। जिसे सुरक्षाबलों ने अपने कब्जे में लिया है। भारतीय सुरक्षा एजेंसी पैकेट की जांच में जुटी हुई है। जिसके लिए बम डिस्पोजल स्क्वाड मौके पर बुलाया गया।
पैकेट की जांच की तो मिली नोटों के बंडल
पाकिस्तानी ड्रोन द्वारा खेत में गिराए गए पैकेट को जब बम डिस्पोजल स्क्वाड ने खोल कर जांच की तो उसमें नोटों बंडल मिले। हालांकि, अभी इसकी जांच की जा कई समय सीमा विश्लेषण रही है कि ये नोट असली हैं या फिर नकली।
ग्रामीणों ने दी संदिग्ध पैकेट की सूचना
Pakistani Drone: पाकिस्तान की ओर से जब जमीन से घुसपैठ पर भारतीय सुरक्षाबलों ने रोक लगा दी तो पाकिस्तान ड्रोन के जरिए आसमान के रास्ते घुसपैठ में लगा रहता है। गुरूवार को तड़के जब यह पैकेट पाकिस्तानी ड्रोन ने विजयपुर इलाके में गिराया तो ग्रामीणों ने इसकी सूचना पुलिस को दी। जिसके बाद पुलिस ने इस पैकेट को जब्त कर उस जगह की घेराबंदी कर तलाशी अभियान चलाया। हालांकि, सीमा पर इस तरह की पाकिस्तानी करतूत की ये कोई नई बात नहीं है। पाकिस्तान की ओर से ये हरकत बार-बार जारी है। ड्रोन के जरिए पाकिस्तान नकली नोटों के अलावा, नशे का सामान और हथियार भी इसी तरह भारतीय सीमा में गिराता रहता है।
झारखंड में 77% के बाद छत्तीसगढ़ में आरक्षण 81% करने की तैयारी?
ईडब्ल्यूएस आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के बाद जिस तरह से कई राज्यों में 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा के पार जाने के कयास लगाए जा रहे थे, क्या अब उसकी शुरुआत हो गई है?
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क्या 50 फ़ीसदी आरक्षण की सीमा के अब कोई मायने नहीं रह गए हैं? कुछ दिन पहले ही झारखंड विधानसभा ने एक विशेष सत्र के दौरान राज्य में आरक्षण को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने वाले विधेयक को अपनी मंजूरी दी है और अब छत्तीसगढ़ में ऐसी ही तैयारी है। एक रिपोर्ट के अनुसार छत्तीसगढ़ की कांग्रेस सरकार 1 दिसंबर से शुरू हो रहे विधानसभा के विशेष सत्र के दौरान एसटी/एससी और अन्य श्रेणियों के लिए कई समय सीमा विश्लेषण जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने के लिए एक क़ानून बनाने की योजना बना रही है।
छत्तीसगढ़ में यह तैयारी तब चल रही है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण पर मुहर लगाते हुए 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा पर अपना रुख बदलने का संकेत दिया है। तब इसने कहा कि 50 फीसदी आरक्षण की सीमा के बाद भी आरक्षण देने में कोई दिक्कत नहीं है। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अब आरक्षण के लिए वो पुरानी मांगें फिर से नहीं उठेंगी जिसके लिए कभी भारी हिंसा तक हो चुकी है? कई राज्यों में आरक्षण की ऐसी मांगें की जाती रही हैं, लेकिन 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा का हवाला देते हुए उनकी मांगों को ठुकरा दिया जाता रहा है।
छत्तीसगढ़ में हाल ही में उच्च न्यायालय ने 58% तक कोटा ले जाने के 2012 के एक सरकारी आदेश को ग़लत बताते हुए कहा था कि 50% से अधिक आरक्षण असंवैधानिक है। इस फ़ैसले से उत्पन्न गतिरोध को हल करने के लिए ही विशेष सत्र बुलाया गया है। टीओआई ने रिपोर्ट दी है कि इसी में जनसंख्या के अनुपात में आरक्षण देने की योजना सामने आ सकती है। यदि सरकार अपनी इस योजना को लागू करती है तो छत्तीसगढ़ में आरक्षण 81% तक हो सकता है।
अंग्रेजी अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, संकेत हैं कि भूपेश बघेल सरकार एसटी के लिए 32%, एससी के लिए 12% और ओबीसी के लिए 27% आरक्षण पर विचार कर रही है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10% कोटा के साथ यह आरक्षण 81% तक हो जाएगा। जबकि 2012 के आदेश में आदिवासियों के लिए 32%, अनुसूचित जाति के लिए 12% और ओबीसी के लिए 14% आरक्षण दिया गया था। हाई कोर्ट के फ़ैसले के बाद आदिवासियों के लिए कोटा 20% है, अनुसूचित जाति का कोटा 16% हो गया है और ओबीसी आरक्षण वही है जो अविभाजित मध्य प्रदेश में था।
वैसे, ईडब्ल्यूएस पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या मराठा, जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी?
जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं। जाट और पाटीदार आंदोलन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। कई दूसरे राज्यों में दूसरी जातियाँ भी आरक्षण मांगती रही हैं।
इन राज्यों में झारखंड भी शामिल है। इसी झारखंड में क़रीब 10 दिन पहले एक विशेष सत्र में विधानसभा ने आरक्षण अधिनियम, 2001 में एक संशोधन पारित किया है, जिसमें एसटी, एससी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को वर्तमान 60 प्रतिशत से बढ़ाने की बात की गई है। प्रस्तावित आरक्षण में अनुसूचित जाति समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 28 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी को 15 प्रतिशत, ओबीसी को 12 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा।
तो सवाल है कि क्या आगे अब आरक्षण की मांग और जोर पकड़ेगी? पिछले साल मई में सुप्रीम कोर्ट ने महाराष्ट्र के उस आरक्षण को रद्द कर दिया था जिसको बॉम्बे हाईकोर्ट ने मराठा समुदाय को 12-13 फ़ीसदी आरक्षण देने को हरी झंडी दी थी। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इंदिरा साहनी बनाम भारत संघ के फ़ैसले में सर्वोच्च न्यायालय द्वारा निर्धारित आरक्षण पर 50 प्रतिशत से अधिक आरक्षण देने के लिए कोई असाधारण परिस्थिति नहीं बनी है।
जाट अपने समुदाय के लिए ओबीसी का दर्जा और आरक्षण माँग रहे हैं। क़रीब पाँच साल पहले हरियाणा में जाट आरक्षण की माँग को लेकर हिंसक आंदोलन हुआ था। आगजनी हुई थी। महिलाओं से गैंगरेप के मामले भी आए थे। आंदोलन के दौरान भड़की हिंसा में 30 लोग मारे गए थे जबकि लगभग 350 से ज़्यादा लोग घायल हुए थे। केंद्र सरकार को इस आग को बुझाने के लिए सेना उतारनी पड़ी थी।
इन घटनाओं के बाद जाटों की मांग पूरी नहीं हुई। इसके बाद भी वे लगातार मांग करत रहे हैं। वे कहते रहे हैं कि जाट समाज के प्रमुख संगठनों, विधायकों, सांसदों व मंत्रियों की मौजूदगी में जाट समाज को केंद्रीय स्तर पर ओबीसी श्रेणी में शामिल करने का वादा किया गया था, लेकिन अब तक ऐसा नहीं किया गया है।
गुर्जर समुदाय ख़ुद को ओबीसी से हटाकर अनुसूचित जनजाति का दर्जा की माँग करता रहा है। राजस्थान में 2007 और 2008 में हिंसक आंदोलन में कई लोग मारे गए थे।
बाद में राज्य सरकार ने राजस्थान पिछड़ा वर्ग संशोधन अधिनियम- 2019 के तहत गुर्जर सहित पाँच जातियों गाड़िया लुहार, बंजारा, रेबारी व राइका को एमबीसी यानी अति पिछड़ा वर्ग में पाँच प्रतिशत विशेष आरक्षण दे दिया था। हालाँकि इसके बाद भी और ज़्यादा आरक्षण की माँग होती रही है। कई बार यह आंदोलन भी हिंसक हुआ।
हार्दिक पटेल अब जिस बीजेपी के साथ हो लिए हैं वे एक समय बीजेपी शासित गुजरात में पाटीदार समुदाय के आरक्षण के लिए हाथों में झंडा उठाए चल रहे थे। उन्होंने बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ मोर्चा खोल दिया था।
हार्दिक पटेल के नेतृत्व वाली पाटीदार अनामत आंदोलन समिति अपने समुदाय को अन्य पिछड़ा वर्ग में शामिल करने और आरक्षण की माँग करती रही है। हालाँकि पटेल समुदाय आरक्षण की मांग राज्य में दो दशक से ज़्यादा समय से कर रहा है। जुलाई 2015 में हिंसक प्रदर्शन हुआ था। आंदोलन जब तक शांत हुआ तब तक करोड़ों रुपये इसकी भेंट चढ़ चुके थे। उस हिंसा को लेकर हार्दिक पटेल के ख़िलाफ़ भी एफ़आईआर दर्ज की गई थी। इन घटनाओं के बाद भले ही आंदोलन कमजोर पड़ गया, लेकिन आरक्षण की मांग उनकी लगातार बनी हुई है।
आंध्र प्रदेश में कापू समुदाय लगातार ओबीसी के तहत आरक्षण की माँग करता रहा है। साल 2014 के विधानसभा चुनाव से पहले तेलुगू देशम पार्टी ने राज्य की सत्ता में आने पर कापू समुदाय को पाँच फ़ीसदी आरक्षण देने का वादा किया था। फ़रवरी 2016 में कापू आरक्षण आंदोलन की मांग उग्र और हिंसक हो गई थी। दिसंबर 2017 में इसके लिए राज्य विधानसभा में एक प्रस्ताव भी पारित किया गया था। हालाँकि केंद्र सरकार ने उस पर सहमति नहीं जताई थी। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना में कापू समुदाय काफ़ी ताक़तवर माना जाता है। कापू एक किसान जाति है। आंध्र प्रदेश में इसे ऊँची जातियों में रखा गया है।
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या अब दूसरी जातियाँ भी इसी आधार पर अपने लिए आरक्षण नहीं माँगेंगी और ऐसे में क्या बवाल नहीं मचेगा?
नियुक्ति प्रक्रिया की अमान्यता संपूर्ण मध्यस्थता खंड को अमान्य नहीं करेगी: दिल्ली हाईकोर्ट
जस्टिस अनूप जयराम भंभानी की खंडपीठ ने कहा कि मध्यस्थता खंड में कई तत्व मौजूद हैं, जैसे मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया, मध्यस्थता का कानून, अनुबंध का कानून, सीट और स्थान आदि हैं। हालांकि, मूल तत्व पक्षकार विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करते हैं। इसलिए केवल इसलिए कि एक तत्व अमान्य हो गया है, यह पूरे खंड को अप्रभावी नहीं बना देगा। साथ ही अमान्य खंड को आसानी से अलग किया जा सकता है।
मध्यस्थता प्रदान करने वाले मध्यस्थता खंड के शब्दांकन पर टिप्पणी करते हुए कोर्ट ने टिप्पणी की कि अगर प्रतिवादी के जीएम मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकते हैं या नियुक्त कर सकते हैं तो 'मेरा रास्ता या राजमार्ग' दृष्टिकोण कानून में मान्य नहीं है।
पार्टियों ने 01.02.2011 को समझौता किया। मध्यस्थता के माध्यम से विवाद के समाधान के लिए प्रदान की गई जीसीसी की धारा 56 के तहत अवार्ड लेटर अनुबंध की सामान्य शर्तों (जीसीसी) द्वारा शासित था। यह भी प्रदान करता है कि केवल महाप्रबंधक ही मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकता है या नियुक्त कर सकता है। साथ ही यह भी प्रदान करता है कि अन्यथा विवाद को मध्यस्थता के लिए नहीं भेजा जाएगा। पक्षकारों के बीच कुछ विवाद उत्पन्न हुआ। तदनुसार, याचिकाकर्ता ने दिनांक 17.12.2020 को मध्यस्थता का नोटिस जारी किया। मध्यस्थ के नाम पर पक्षकारों के सहमत होने में विफल रहने पर याचिकाकर्ता ने ए एंड सी अधिनियम की धारा 11 के तहत आवेदन दायर किया।
याचिकाकर्ता ने निम्नलिखित आधारों पर मध्यस्थ की नियुक्ति की मांग की:
1. जीसीसी का खंड 56 मध्यस्थ की एकतरफा नियुक्ति के लिए प्रदान करता है और 2015 के संशोधन अधिनियम के माध्यम से धारा 12(5) को सम्मिलित करने के मद्देनजर, इसे अमान्य कर दिया गया। इस प्रकार, न्यायालय को मध्यस्थ नियुक्त करना चाहिए।
2. मध्यस्थ की नियुक्ति के लिए प्रक्रिया की अमान्यता संपूर्ण मध्यस्थता खंड को अप्रभावी नहीं बनाएगी।
3. मध्यस्थता का नोटिस 2015 के संशोधन के लागू होने के बाद दिया गया, इसलिए धारा 12(5) वर्तमान विवाद पर पूरी तरह लागू होगी।
4. मध्यस्थता का नोटिस उन विवादों के संबंध में जारी किया जाता है, जो मध्यस्थता के पहले नोटिस (2014) के बाद उत्पन्न हुए हैं और चूंकि परियोजना अभी भी चल रही है, दावे बाद की अवधि से संबंधित हैं। ऐसे बाद के दावों के लिए कार्रवाई का कारण पहले नोटिस के बाद उत्पन्न हुआ और दावे समय के भीतर हैं।
प्रतिवादी ने निम्नलिखित आधारों पर याचिका की पोषणीयता पर आपत्ति की:
1. मध्यस्थता के लिए पार्टियों की सहमति मध्यस्थता खंड की आधारशिला है और जीसीसी के खंड 56 में शर्त है कि प्रतिवादी का केवल महाप्रबंधक या तो स्वयं मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकता है या पार्टियों के लिए मध्यस्थ नियुक्त कर सकता है अन्यथा विवाद नहीं होगा मध्यस्थता के लिए भेजा जाना।
2. जैसा कि जीएम मध्यस्थ के रूप में कार्य नहीं कर सकता है या नियुक्त नहीं कर सकता है, पार्टियों ने स्पष्ट रूप से प्रदान किया कि दी गई स्थिति में कोई मध्यस्थता नहीं होगी। इसलिए संपूर्ण मध्यस्थता खंड जीवित नहीं है।
3. न्यायालय उसी खंड के दूसरे भाग को प्रभावी किए बिना खंड के एक भाग को प्रभावी नहीं कर सकता है, जिसमें यह प्रावधान है कि यदि मध्यस्थ को सहमत प्रक्रिया के अनुसार नियुक्त नहीं किया जा सकता है तो कोई मध्यस्थता बिल्कुल नहीं होगी।
4. याचिकाकर्ता के दावे पूर्व-दृष्टया समय-सीमा से वर्जित हैं, क्योंकि वे वर्ष 2014 से संबंधित हैं और मध्यस्थता का नोटिस 2020 के उत्तरार्ध में दिया गया है।
5. मध्यस्थता का नोटिस भी अपर्याप्त है और विवाद की मात्रा को निर्दिष्ट नहीं करता है। इसलिए यह वैध आह्वान या मध्यस्थता की कार्यवाही शुरू करने की राशि नहीं होगी।
न्यायालय द्वारा विश्लेषण
न्यायालय ने कहा कि प्रतिवादी मध्यस्थता खंड के अस्तित्व पर विवाद नहीं करता है, लेकिन इसकी वैधता को इस आधार पर चुनौती देता है कि मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया की अवैधता के कारण पूरा खंड इसके साथ समाप्त हो जाता है।
न्यायालय ने कहा कि केवल इसलिए कि मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया 2015 के संशोधन अधिनियम के कारण अमान्य हो गई है, यह पूरे मध्यस्थता खंड को अमान्य नहीं करेगा।
न्यायालय ने माना कि मध्यस्थता खंड में कई तत्व मौजूद हैं, जैसे कि मध्यस्थ की नियुक्ति की प्रक्रिया, मध्यस्थता का कानून, अनुबंध का कानून, सीट और स्थान, अपवादित मामले, लागत की देयता, आदि। हालांकि, मूल तत्व विवाद को मध्यस्थता के लिए संदर्भित करने के लिए पार्टियों की सहमति रहता है। इसलिए यह केवल एक तत्व के अमान्य हो जाने के कारण पूरे खंड को अप्रभावी नहीं बना देगा। इस कारण अमान्य खंड को आसानी से अलग किया जा सकता है।
मध्यस्थता प्रदान करने वाले मध्यस्थता खंड के शब्दांकन पर न्यायालय ने टिप्पणी की हुए कहा कि अगर प्रतिवादी के जीएम मध्यस्थ के रूप में कार्य कर सकते हैं या नियुक्त कर सकते हैं तो 'मेरा रास्ता या राजमार्ग' दृष्टिकोण कानून में मान्य नहीं है।
न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता खंड को तत्काल अमान्य नहीं किया जाना चाहिए, जब तक कि ऐसा करने के लिए कोई बाध्यकारी आधार न हो और मध्यस्थता को वैकल्पिक मोड या विवाद समाधान के रूप में प्रोत्साहित किया जाए।
इसके बाद न्यायालय ने दावों की सीमा के संबंध में आपत्ति पर विचार किया। न्यायालय ने कहा कि मध्यस्थता के अपने नोटिस में याचिकाकर्ता ने केवल उन दावों के लिए मध्यस्थता की मांग की है, जो पहले की मध्यस्थता के बाद उत्पन्न हुए हैं।
यह माना गया कि दावों के समयबाधित होने का एकमात्र आरोप न्यायालय को मध्यस्थ नियुक्त करने से नहीं रोकेगा और परिसीमा के मुद्दे को मध्यस्थ द्वारा तय किए जाने के लिए छोड़ देना चाहिए।
तदनुसार, कोर्ट ने आवेदन को अनुमति दी और मध्यस्थ नियुक्त किया।
केस टाइटल: राम कृपाल सिंह कंस्ट्रक्शन प्रा. लिमिटेड बनाम एनटीपीसी, एआरबी. पी. 582/2020
याचिकाकर्ता के वकील: अमित पवन, हसन ज़ुबैर वारिस, आकाश और शिवांगी।
ब्राजील की चुनाव एजेंसी ने वोट रद्द करने के लिए बोलसोनारो के दबाव को खारिज किया
ब्राजील के चुनावी प्राधिकरण के प्रमुख ने अधिकांश इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों कई समय सीमा विश्लेषण पर डाले गए मतपत्रों को रद्द करने के राष्ट्रपति जायर बोल्सोनारो के राजनीतिक दल के अनुरोध को अस्वीकार कर दिया है, जो 30 अक्टूबर के चुनाव को उलट देता।
अलेक्जेंड्रे डी मोरेस ने एक पूर्व निर्णय जारी किया था जिसने स्पष्ट रूप से इस संभावना को बढ़ा दिया था कि बोल्सनारो की लिबरल पार्टी को इस तरह की चुनौती का सामना करना पड़ सकता है। उन्होंने 2 अक्टूबर को पहले चुनावी दौर के परिणामों को शामिल करने के लिए एक संशोधित रिपोर्ट की प्रस्तुति पर अनुरोध के विश्लेषण की शर्त रखी, जिसमें पार्टी ने कांग्रेस के दोनों सदनों में किसी भी अन्य की तुलना में अधिक सीटें जीतीं, और उन्होंने 24 घंटे की समय सीमा तय की .
इससे पहले बुधवार को पार्टी अध्यक्ष वल्देमार कोस्टा और वकील मार्सेलो डी बेसा ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस की और कहा कि कोई संशोधित रिपोर्ट नहीं होगी।
"वादी के विचित्र और अवैध अनुरोध का पूर्ण बुरा विश्वास . प्रारंभिक याचिका में जोड़ने से इनकार करने और अनियमितताओं के किसी भी सबूत की कुल अनुपस्थिति और तथ्यों की पूरी तरह से धोखाधड़ी की कहानी के अस्तित्व दोनों से साबित हुआ था," डी मोरेस ने घंटों बाद अपने फैसले में लिखा।
उन्होंने बैड फेथ मुकदमेबाजी के लिए 23 मिलियन रईस ($ 4.3 मिलियन) का जुर्माना अदा किए जाने तक लिबरल पार्टी के गठबंधन के लिए सरकारी धन को निलंबित करने का भी आदेश दिया।
मंगलवार को, डी बेस्सा ने ब्राजील की अधिकांश मशीनों में एक सॉफ़्टवेयर बग का हवाला देते हुए बोल्सनारो और कोस्टा की ओर से 33-पृष्ठ का अनुरोध दायर किया - उनके आंतरिक लॉग में व्यक्तिगत कई समय सीमा विश्लेषण पहचान संख्या की कमी है - यह तर्क देने के लिए कि उनके द्वारा रिकॉर्ड किए गए सभी वोटों को रद्द कर दिया जाना चाहिए। डी बेस्सा ने कहा कि ऐसा करने से बोलसोनारो के पास शेष वैध वोटों का 51% हिस्सा रह जाएगा।
न तो कोस्टा और न ही डी बेसा ने स्पष्ट किया है कि बग ने चुनाव परिणामों को कैसे प्रभावित किया होगा। द एसोसिएटेड प्रेस द्वारा परामर्श किए गए स्वतंत्र विशेषज्ञों ने कहा कि नए खोजे जाने पर, यह विश्वसनीयता को प्रभावित नहीं करता है और प्रत्येक वोटिंग मशीन अभी भी अन्य माध्यमों से आसानी से पहचानी जा सकती है। अपने फैसले में, डी मोरेस ने इसे नोट किया।