दैवीय अनुपात

पंचाग पूजन कर वैदिक मंत्रो के द्वारा कलश पूजन होगा। प्रातः 6 बजे से य़ज्ञ हवन श्रीमद् भागवत अष्टोचर शत् ‘सस्वर पाठ’, प्रातः 6 बजे से ही रूद्राभिषेक, प्रातः 7 बजे से अठारह पुराण-परायण, प्रातः 11 बजे नारायण मंच पर रामकथा पं. सतपाल रामायाणी, पुरूषोत्तम दास पचैरी, नीलम गायत्री, रामजीवन पस्तोर द्वारा, सायं 6 बजे ललिता सहस्त्रार्चन अनुष्ठान, सायं 7 बजे से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा भाई करतार सिंह द्वारा गुरूवाणी एवं आभास और श्रेयास जोशी द्वारा कबीर गायन, दैवीय अनुपात रात्रि 10 बजे से रासलीला रामाचार्य देविकीनंदन शर्मा वृंदावन ग्रुप के द्वारा की जायेगी।
पं. रमाकांत जी व्यास ने बताया कि लक्ष्मीनारायण महायज्ञ संत समागम की तैयारी पूरी हो गयी है। सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा अपने वक्तगणों एवं संतो के स्वागत के लिये पूरी तरह तैयार है। देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से आये विशेषज्ञों की निगरानी में पूरा कुंभ स्थल सज कर तैयार है। कल से प्रतिदिन सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा में 2 लाख से अधिक भक्तगण जुटेंगे। 5 हजार के करीब काॅटेज पूरी तरह तैयार हो चुके है। संत समागम में देश के प्रख्यात संत जुटेंगे। जिसमें प्रमुख रूप से संत नृत्य गोपालदास जी, बाबा रामदेव के आने की स्वीकृति मिल चुकी। इसके अलावा चार राज्यों के मुख्यमंत्री, कई केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति भी सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा में आ रहे है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद प्रभात झा 18 अप्रैल को रावतपुरा सरकार लोक कल्याण ट्रस्ट संस्कृत विद्यालय के निदेशक रमाकांत व्यास का कहना है कि यह 100 से अधिक अस्थायी नगर बनाये जा रहे है। संत शिरोमणि श्री रविशंकर जी महाराज ‘‘रावतपुरा सरकार’’ पदमावती निलियम कुटीर में रहेंगे। यह कुटीर 5400 वर्गफीट में बनायी गयी है।
डॉ तारा सिंह अंशुल का आलेख – कन्या भ्रूण हत्या कारण एवम् निवारण
विभिन्न राष्ट्रीय व दैवीय अनुपात अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक सम्मानों से नवाजी़ गयी वरिष्ठ कवयित्री , लेखिका , कथाकार , समीक्षक , आर्टिकल लेखिका। आकाशवाणी व दूरदर्शन गोरखपुर , लखनऊ एवं दिल्ली में काव्य पाठ , परिचर्चा में सहभागिता। सामाजिक मुद्दे व महिला एवं बाल विकास के मुद्दों पर वार्ता, कविताएं व कहानियां एवं आलेख, देश विदेश के विभिन्न पत्रिकाओं एवं अखबारों में निरन्तर प्रकाशित। संपर्क - [email protected]
पुरानी नीतियों की वापसी
आर्थिक परिस्थितियां कठिन होती जा रही हैं। राजकोषीय नीति से जुड़े आंकड़े चेतावनी दे रहे हैं। जून तिमाही में व्यय, राजस्व का 5.4 गुना था! मौद्रिक नीति में भी कोई गुंजाइश नहीं है। गुरुवार को यह देखने को भी मिला। दरअसल मुद्रास्फीतिक समायोजन के बाद वास्तविक नीतिगत दरें पहले ही ऋणात्मक हैं। एक ओर जहां सरकार और भारतीय रिजर्व बैंक के हाथ बंधे हुए हैं, वहीं शेष अर्थव्यवस्था के संसाधन भी सीमित हैं क्योंकि जीडीपी में पांच फीसदी दैवीय अनुपात या उससे अधिक की गिरावट आने की आशंका है। बीती तिमाही में कारोबारी मुनाफे में 30 फीसदी की गिरावट आई है और आम परिवार रोजगार जाने की परेशानी से जूझ रहे हैं। बचत और निवेश का वृहद आर्थिक अनुपात जो वृद्धि को सहारा देता है उसमें गिरावट आएगी। जाहिर है सरकार मौजूदा बचत का एक बड़ा हिस्सा अपने इस्तेमाल में लाएगी।
ये समस्याएं आर्थिक हालात मे थोड़ी बहुत बेहतरी से जाने वाली नहीं हैं। जून तिमाही में निराशाजनक आंकड़े यही बताते हैं। सुधार होगा लेकिन सवाल यह है कि किस स्तर से? उदाहरण के लिए सरकारी कर राजस्व जून तिमाही में करीब आधा रह गया। यदि सितंबर तिमाही में यह दोगुना हो जाता है तो भी वर्ष का राजकोषीय घाटा लक्ष्य जो 8 लाख करोड़ रुपये से कुछ ही कम है वह वर्ष के बीच में ही पार हो जाएगा। वर्ष की दूसरी छमाही में राजस्व सुधार के उदार अनुमानों के बाद भी घाटा जीडीपी के 6.4 फीसदी के उच्च स्तर तक रह सकता है। इस अनुमान को ध्यान में रखते ही सरकार ने पहले ही वर्ष की उधारी संबंधी आवश्यकता 50 फीसदी बढ़ाकर 12 लाख करोड़ रुपये कर दी है। सरकार को इससे अधिक की आवश्यकता हो सकती है। चूंकि आरबीआई सरकारी बैंकर की भूमिका में है इसलिए मौद्रिक नीति को और सीमित किया जा सकता है।
यहां पर बात आती है पहले उठाए गए नीतिगत कदमों को वापस लेने की। शुरुआत इस अनुमान से करते हैं कि भारी भरकम राजकोषीय प्रोत्साहन ही इकलौता उत्तर है। वैश्विक वित्तीय संकट के दौर में भी ऐसा ही देखने को मिला था जब राजकोषीय घाटा जीडीपी के 2.5 फीसदी से बढ़कर 6.4 फीसदी हो गया था। उसके बाद सुधार देखने को मिला था, कुछ लोग कहेंगे कि वह कुछ ज्यादा ही बेहतर था। तब और अब में अंतर यह है कि घाटा और सार्वजनिक ऋण उस वक्त कम थे, ऐसे में बड़े राजकोषीय प्रोत्साहन और सरकारी ऋण विस्तार की गुंजाइश थी। इस बार ऐसा नहीं है इसलिए सरकार को चाहे- अनचाहे नीतिगत कदमों को वापस लेना पड़ सकता है ताकि घाटे का स्वत: मुद्रीकरण किया जा सके। आम आदमी की भाषा में इसका अर्थ है नकदी छापना जिसे सन 1990 के दशक में बतौर नीति और व्यवहार त्याग दिया गया था। इस बीच बैंक एक बार पुन: दैवीय अनुपात फंसे हुए कर्ज में डूबने की ओर बढ़ रहे हैं।
आरबीआई के फंसे हुए कर्ज के संभावित अनुमान के मुताबिक उन्हें करीब 4 लाख करोड़ रुपये की अतिरिक्त पूंजी की आवश्यकता हो सकती है। चूंकि मुद्रा का अभाव है और लगातार नई कंपनियां दबाव में आ रही हैं इसलिए वित्तीय और कारोबारी क्षेत्रों को बैलेंस शीट की दोहरी समस्या के नए चरण के बीच सुचारु बनाए रखने का इकलौता तरीका यही है कि एक और मोर्चे पर नीतिगत कदमों को पलटा जाए। आरबीआई ने ऋण पुनर्गठन को दोबारा शुरू करके ऐसा ही किया है। यदि वृहद आर्थिक प्रबंधन इतना सीमित है कि पुराने कदमों को पलटना पड़ रहा है तो दीर्घावधि की नीति का क्या? सरकार के अब तक के कदम श्रम नीतियों को उदार बनाने, नए क्षेत्रों (कोयला खनन आदि) में विदेशी निवेश आमंत्रित करने, आयात प्रतिस्थापन को बढ़ावा देने और परिवहन का बुनियादी ढांचा सुधारने आदि पर केंद्रित रहे हैं। इनसे अंतर आएगा, हालांकि आवश्यक नहीं कि हर कदम बेहतरी ही लाए।
चीन से आयात (जो वाणिज्यिक व्यापार के गैर तेल घाटे का अहम हिस्सा है) का प्रतिरोध समझा जा सकता है लेकिन खुले व्यापार के लाभ को लेकर भरोसे की कमी के चलते सरकार कांग्रेस की बहुत पहले त्यागी गई नीति को अपनाने की दिशा में बढ़ी है। जबकि आमतौर पर वह कांग्रेस के कदमों का प्रतिकार करती आई है। यानी दो और क्षेत्रों में पुराने कदमों की वापसी होगी- उच्च टैरिफ और तीन दशक बाद आयात लाइसेंसिंग की वापसी। पूर्व में त्यागी गई ये नीतियां पहले दौर में कामयाब नहीं रही थीं। मौजूदा सरकार को लगता है कि वह बेहतर प्रदर्शन कर सकती है। उसे शुभकामनाएं लेकिन इस बीच ऐसा लगता है कि केवल दैवीय हस्तक्षेप ही कोविड के कहर से बचा सकता है। बशर्ते कि धर्म जनता के लिए सरकार की अफीम से बेहतर साबित हो।
रावतपुरा में 18 से सामाजिक कुंभ
भिण्ड। लहार स्थित सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा में 18 अप्रैल से प्रातः 9 बजे से सामाजिक कुंभ शुरू होगा। यह जानकारी रामाकांत जी व्यास ने दी। उन्होने बताया कि प्रातः 9 बजे 1008 कलश यात्रा गोविन्दामण्डम् से शुरू होकर सिद्ध रावतपुरा सरकार मंदिर के सामने सरोवर से जल भरकर मेला क्षेत्र परिक्रमा स्थल पर पहुंचेगी ।
पंचाग पूजन कर वैदिक मंत्रो के द्वारा कलश पूजन होगा। प्रातः 6 बजे से य़ज्ञ हवन दैवीय अनुपात श्रीमद् भागवत अष्टोचर शत् ‘सस्वर पाठ’, प्रातः 6 बजे से ही रूद्राभिषेक, प्रातः 7 बजे से अठारह पुराण-परायण, प्रातः 11 बजे नारायण मंच पर रामकथा पं. सतपाल रामायाणी, पुरूषोत्तम दास पचैरी, नीलम गायत्री, रामजीवन पस्तोर द्वारा, सायं 6 बजे ललिता सहस्त्रार्चन अनुष्ठान, सायं 7 बजे से अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त कलाकारों द्वारा भाई करतार सिंह द्वारा गुरूवाणी एवं आभास और श्रेयास जोशी द्वारा कबीर गायन, रात्रि 10 बजे से रासलीला रामाचार्य देविकीनंदन शर्मा वृंदावन ग्रुप के द्वारा की जायेगी।
पं. रमाकांत जी व्यास ने बताया कि लक्ष्मीनारायण महायज्ञ संत समागम की तैयारी पूरी हो गयी है। सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा अपने वक्तगणों एवं संतो के स्वागत के लिये पूरी तरह तैयार है। देशभर के विभिन्न क्षेत्रों से आये विशेषज्ञों की निगरानी में पूरा कुंभ स्थल सज कर तैयार है। कल से प्रतिदिन सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा में 2 लाख से अधिक भक्तगण जुटेंगे। 5 हजार के करीब काॅटेज पूरी तरह तैयार हो चुके है। संत समागम में देश के प्रख्यात संत जुटेंगे। जिसमें प्रमुख रूप से संत नृत्य गोपालदास जी, बाबा रामदेव के दैवीय अनुपात आने की स्वीकृति मिल चुकी। इसके अलावा चार राज्यों के मुख्यमंत्री, कई केन्द्रीय मंत्री, वरिष्ठ उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति भी सिद्ध क्षेत्र रावतपुरा में आ रहे है। भाजपा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष एवं राज्यसभा सांसद प्रभात झा 18 अप्रैल को रावतपुरा सरकार लोक कल्याण ट्रस्ट संस्कृत विद्यालय के निदेशक रमाकांत व्यास का कहना है कि यह 100 से अधिक अस्थायी नगर बनाये जा रहे है। संत शिरोमणि श्री रविशंकर जी महाराज ‘‘रावतपुरा सरकार’’ पदमावती निलियम कुटीर में रहेंगे। यह कुटीर 5400 वर्गफीट में बनायी गयी है।
108 कुंडीय यज्ञशाला पूरी तरह तैयार
रावतपुरा में 18-26 अप्रैल तक लगने वाले सामाजिक कुंभ श्री लक्ष्मीनारायण महायज्ञ संतसामागम के लिये 108 कुंडीय अनूठी यज्ञ शाला भी बनायी गयी है। जहां प्रतिदिन यज्ञ की आहूतियां दी जायेगी। यज्ञ शाला को इलाहाबाद से आये पं. दुर्गेश जी के निर्देशन में बनाया गया है।
श्री रावतपुरा सरकार धाम भारत में मध्य प्रदेश के चंबल क्षेत्र में स्थित है। यह पहुज और सोनम्रिगा नदियों के बीच स्थित है और दो प्रमुख शहरों से 100 किमी की दूरी पर है ग्वालियर और झांसी। 1960 से 1985 की अवधि के दौरान, चंबल अपने आपराधिक गतिविधियों के लिए पूरे भारत में कुख्यात रहे हैं क्योंकि शिक्षा की कमी, आय के स्रोत और कृषि योग्य भूमि। 5 जुलाई 1968 को गुरुवार को शुभ दिन पर इस देश में, एक महान संत का जन्म उत्तर भारत के बुंदेलखंड क्षेत्र में चिपरी नामक गांव में हुआ था। अगर कोई अपने जन्म के दौरान हुई घटनाओं का विश्लेषण करता है तो यह काफी स्पष्ट हो जाता है कि यह एक सामान्य जन्म नहीं था, लेकिन एक दैवीय अनुपात का अवतार। इन घटनाओं में गवाहों में माता, श्रीमती रामसाही जी और पिता श्रीकृष्ण जी जी इस सरल और धार्मिक ब्राह्मण परिवार की थी, जो कभी-कभी नवजात के चंचल, सुदूर दैवी कृत्यों से मंत्रमुग्ध होती थीं। बच्चे को अपने दादा दादी के द्वारा रावी के रूप में नामित किया गया था और बाद में उनके विशाल शांतिपूर्ण स्वभाव के कारण रविशंकर को रवि (सूर्य) को दर्शाया गया था जो कि अपनी दिव्य ऊर्जा और शंकर (भगवान शिव) के साथ दुनिया को शक्तिशाली बनाता है जो एक शांत प्रभाव प्रदान करता है। और इस प्रकार एक विशाल दिव्य व्यक्ति की यात्रा शुरू हुई जो आज अपनी आध्यात्मिक दिशा और मानवीय गतिविधियों के कारण बढ़ती प्रसिद्धि का आदेश दे रहा है।
1990 में एक महान दिव्य संत ने 17 वर्ष की बहुत कम उम्र में इस मिशन पर एक मिशन शुरू करने का प्रतिज्ञा दी जो इस क्षेत्र के सामाजिक ढांचे को बदल सके और साथ ही जनता के बीच आध्यात्मिक जीवन का संदेश फैल सके। यद्यपि यह संत इतने अशांतता का एक मिशन करने के लिए बहुत छोटा था, फिर भी जो कोई भी उसके पास आया वह उसकी ईश्वरीय और करुणा से छू गया था और उन्होंने दृढ़ता से अपने दिल में अपनी जगह स्थापित की। इस युवा संत द्वारा धाम के लिए चुना गया स्थल एक छोटा प्राचीन हनुमानजी मंदिर था जो चंबल क्षेत्र के कुख्यात घाटियों के मध्य में एक गरीब राज्य में था। कोई भी इस मंदिर को दौरा नहीं करता था, न ही उसकी पूजाओं पर पूजा की जाती थी। 1991 में इस युवा संत ने एक यज्ञ (हिंदू धार्मिक समारोह) को व्यवस्थित करने का प्रतिज्ञा ली जो कि इस क्षेत्र के लोगों द्वारा लंबे समय तक पीड़ित होने वाले दुखों के घावों को ठीक करेगा। यह यज्ञ सफल रहा और लोगों को मानवता के उत्थान के लिए एक संत ने एक प्रतिज्ञा के प्रभाव को महसूस किया। चूंकि इस संत की पहचान के बारे में हमारी जिज्ञासा बेहतर हो जाती है, वह श्री रावशंकर जी महाराज के अलावा अन्य कोई नहीं जो सर्वोच्च चेतना के जीवित अवतार है।
1991-95 की अवधि के बीच दिव्य स्वामी की देखरेख में कई आध्यात्मिक, धार्मिक और मानवीय गतिविधियों का प्रदर्शन किया गया। 1996 में, महाराज श्री ने अपने गुरु ब्रह्मृषा देववरा बाबा की याद में विश्व शांति के लिए बड़े पैमाने पर एक और यज्ञ को व्यवस्थित करने के लिए एक और शपथ ली। हर कोई सोचा रहा था कि इस तरह के एक दूरदराज के स्थान में इतने बड़े पैमाने पर एक धार्मिक आयोजन आयोजित करने के लिए लगभग असंभव था, लेकिन महाराजा श्री ने उन सभी को गलत साबित कर दिया और भव्य आयोजन जो बीबीसी लंदन के एशिया में सबसे बड़ा धार्मिक समारोह के रूप में मनाया गया था महान सफलता।
वर्ष 2005 में 14 वर्ष के बाद से महाराजा श्री ने पहले इस स्थान पर अपना पैर स्थापित किया और इस मिशन को शुरू करने के लिए प्रतिज्ञा ली, आश्रम अब एक धाम (तीर्थ यात्रा) में विकसित हो गया है और इसे श्री रावतपुरा सरकार धाम नाम दिया गया है। महाराज श्री कहते हैं कि कोई भी अयोध्या में ज्ञान, चित्रकूट में टुकड़ी और वृंदावन में भक्ति (हिंदू धर्म के महत्व के 3 स्थानों पर) खोज सकता है, लेकिन रावतपुरा धाम ऐसा एक ऐसा स्थान है जहां कोई भी इन तीन गुणों को प्राप्त करने की इच्छा रख सकता है। किसी भी व्यक्ति जो सच्चाई के लिए एक ईमानदार खोज के साथ रावतपुरा धाम में आता है, एक शुद्ध और सरल दिल और जीवन के किसी भी पहलू में शक्ति और दिशा के लिए पूछता है, बिना किसी संदेह से उसकी इच्छा पूरी हो जाती है।
उत्तराखंड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को पूर्वोत्तर राज्यों की तर्ज पर दें विशेष पैकेज’
नई दिल्ली/देहरादून। मुख्यमंत्री त्रिवेन्द्र सिंह रावत ने केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर से भेंट कर उत्तराखण्ड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को पूर्वोत्तर राज्यों की भांति विशेष पैकेज देने का अनुरोध किया। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसके लिए बजट आवंटन में निर्धनता अनुपात के साथ ही पलायन की समस्या को भी आधार के रूप में लिया जाए।
मुख्यमंत्री ने कहा कि उत्तराखण्ड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन के द्वारा दीनदयाल अन्त्योदय योजना राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के अन्तर्गत योजना के प्रारम्भ से दैवीय अनुपात वर्तमान तक 13 जनपदों के 95 विकासखण्डों में कार्य किया जा रहा है। अपने उद्देश्य की पूर्ति हेतु यूएसआरएलएम द्वारा स्वयं सहायता समूहों तथा उनके उच्च स्तरीय संगठनों का गठन कर लिया गया है। 16422 समूहों की सूक्ष्म ऋण योजना तैयार करते हुये उन्हें आजीविका गतिविधियों से जोड़ने के लिए समूहों को सीआईएफ एवं बैंक लिकेंज कर ऋण उपलब्ध कराया गया है। सूक्ष्म ऋण योजना के आधार पर राज्य में गठित समूहों द्वारा 65 प्रकार की आजीविका सम्वर्धन गतिविधियों का चयन किया गया है। समूहों की क्षमता विकास करते हुए उन्हे सतत् आजीविका के साधन उपलब्ध कराये जाने हैं, जिसके लिए इन समूहों को निरन्तर प्रशिक्षण की आवश्यकता है। मुख्यमंत्री ने कहा कि समूहों को वर्तमान में उत्तराखण्ड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन स्तर पर प्रशिक्षण प्रदान करवाया जा रहा है किन्तु वित्तीय संसाधनों की कमी के कारण सभी समूहों को आजीविका सम्बन्धित गतिविधियों का प्रशिक्षण दिया जाना सम्भव नही हो पा रहा है। साथ ही महिला स्वयं सहायता समूहों द्वारा उत्पादित वस्तुओं के विपणन हेतु पेकेजिंग यूनिट स्थापना, पैकेजिंग सामग्री, सरस दैवीय अनुपात विपणन केन्द्र में बुनियादी सुविधाओं का विकास, ग्रोथ सेन्टर में बुनियादी सुविधाओं का विकास, उत्पादों की डिजाइनिंग, ब्रांड डेवलेपमेंट एवं उत्पादों के प्रचार प्रसार, उत्पाद बिक्री तथा मार्केट लिंकेज हेतु स्थानीय स्तर पर मेलों का आयोजन, क्रेता-विक्रेता सम्मेलन की प्रदान करने एवं सामुदायिक कैडर तथा कार्यरत मानव संसाधन सहित विभिन्न क्रियाकलापो के संचालन हेतु अतिरिक्त धनराशि की आवश्यकता होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि राज्य में मिशन के सफल संचालन हेतु सभी 95 विकास खण्डों में विभिन्न पदों पर कुल 407 पद सृजित किये गये हैं जिसके सापेक्ष सभी पदों पर तैनाती नियमानुसार कर दी गई है। राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन में सृजित 407 पदों के सापेक्ष मानदेय भुगतान हेतु प्रतिवर्ष लगभग 11 करोड़ रूपये की आवश्यकता होगी जिसकी देयता प्रति माह अनिवार्य रूप से होगी।
मुख्यमंत्री ने कहा कि डे-एनआरएलएम (दीनदयाल अन्त्योदय योजना- राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन) के अन्तर्गत वित्तीय वर्ष 2019-20 में उत्तराखण्ड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन द्वारा मिशन के विभिन्न घटकों में 9572.56 लाख रुपये की सैद्धान्तिक स्वीकृति प्रदान करते हुए 4095.52 लाख रुपये की अवमुक्त करने की स्वीकृति प्रदान की गई है। जबकि कम्यूनिटी फंड, प्रशिक्षण, मार्केटिंग, मानव संसाधन आदि गतिविधियों में 6601 लाख रुपए की जरूरत है। इस प्रकार राज्य को प्रतिवर्ष कुल 10696.72 लाख रुपये की आवश्यकता होगी।मुख्यमंत्री ने कहा कि पर्वतीय व सीमांत जनपदों में स्थानीय स्तर पर आजीविका क्रियाकलापों को सुदृढ़ किया जाना जरूरी है। इसके लिए निर्धनता अनुपात के साथ-साथ पलायन व अति संवेदनशील सीमांत जनपदों व दैवीय आपदा से प्रभावित क्षेत्रों में आजीविका के माध्यम से पलायन रोकने के दृष्टिगत उत्तराखण्ड राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन को पूर्वोत्तर राज्यों की भांति विशेष पैकेज दिया जाए।
मुख्यमंत्री ने पीएमजीएसवाई-फेज-1 के अन्तर्गत केंद्र सरकार द्वारा अनुमोदित कोर नेटवर्क में प्रस्तावित मार्गो में से स्वीकृत, निर्मित अथवा निर्माणाधीन 299.98 करोड़ लागत के 139 सेतुओं के निर्माण के लिए कार्यवाही का अनुरोध किया गया, जिस पर केन्द्रीय मंत्री तोमर ने सकारात्मक रुख रखते हुए प्रकरण का परीक्षण कराने हेतु सम्बन्धित अधिकारियों को निर्देश दिए। इसके साथ ही मुख्यमंत्री द्वारा पीएमजीएसवाई-1, स्टेज-2 के अन्तर्गत 529.42 करोड़़ लागत के 121 मार्गों (लम्बाई 1051.29 कि0मी0) के पक्कीकरण के लम्बित प्रकरण पर अग्रिम कार्यवाही का भी अनुरोध किया।
परिभाषा पहलू
रोजमर्रा की भाषा में, एक पहलू एक पहलू है जिसे एक मुद्दा, एक व्यक्ति, आदि माना जा सकता है। उदाहरण के लिए: "एरिक कैंटोना ने कुछ महीने पहले रिलीज़ हुई फिल्म में अभिनेता के अपने पहलू से आश्चर्यचकित किया, " "विरोध बहुत गंभीर हैं और एक आर्थिक पहलू है जिसे हम कम नहीं कर सकते हैं", "गायक ने एक संगीत कार्यक्रम में अपना हास्य दिखाया। चुटकुले ” ।
इसलिए, फेसला एक मुद्दे का एक पहलू या दृष्टिकोण हो सकता है। इसका तात्पर्य यह है कि इस मुद्दे पर एक से अधिक परिप्रेक्ष्य से विचार किया जा सकता है या विभिन्न मानदंडों को ध्यान में रखा जा सकता है: "हमें अपने सभी पहलुओं में संकट का विश्लेषण करना होगा, अपने आप को वित्त तक सीमित किए बिना", "भेदभाव इस संघर्ष का सबसे गंभीर पहलू है" ।
कहा गया है कि सब कुछ के अलावा, यह भी जोर दिया जाना चाहिए कि, कई मामलों में, अक्सर इस्तेमाल किया जाने वाला शब्द एक ऐतिहासिक मंच या एक विशिष्ट कलात्मक आंदोलन की विशेषताओं को संदर्भित करने के लिए उपयोग किया जाता है। इसका एक स्पष्ट उदाहरण यह है कि हम अक्सर इस तथ्य का उल्लेख करने के लिए पुनर्जागरण के दोहरे पहलू के बारे में बात करते हैं कि यह एक महान बौद्धिक रुचि के रूप में एक ही समय में क्लासिकवाद के लिए अपने चिह्नित जुनून की विशेषता थी।
वास्तव में उस अवस्था में उन पुरुषों में से एक रहते थे जिन्हें सबसे अधिक संस्कारी पहलुओं में से एक माना जाता है और वे सभी बड़ी सफलता के साथ। हम लियोनार्डो दा विंची का उल्लेख कर रहे हैं, जो पुनर्जागरण व्यक्ति की तरह एक आदर्श उदाहरण बन गया था।
अपने मामले में, उन्होंने इन जैसे क्षेत्रों में अग्रणी भूमिका निभाई:
• पेंटिंग। इस क्षेत्र के भीतर "द लास्ट सपर" या "ला जियोकोंडा" जैसे महत्वपूर्ण कलात्मक कार्य किए गए हैं।
• मूर्तिकला इस क्षेत्र में, घुड़सवारी प्रतिमा बाहर खड़ी है, जिसमें फ्रांसिस्को I Sforza का प्रतिनिधित्व किया जाता है, जो मिलान में सबसे महत्वपूर्ण राजवंशों में से एक का संस्थापक था।
• विज्ञान। इस क्षेत्र में, कई गतिविधियों पर प्रकाश डाला गया, सबसे ऊपर, दैवीय अनुपात की स्थापना। उन्होंने कीमिया को भी विकसित किया, बीम की ताकत से दैवीय अनुपात संबंधित कानूनों को परिभाषित किया, मानव शरीर रचना विज्ञान का गहराई से अध्ययन किया, जिसकी बदौलत उन्होंने लाशों के विच्छेदन को अंजाम दिया, और उनमें से एक बनाया जिसे पहले चित्र माना जाता है जिसमें प्रतिनिधित्व किया जाता है अपनी माँ के गर्भ में एक भ्रूण को।
मनुष्य की विभिन्न विशेषताओं को पहलुओं के रूप में भी वर्णित किया जा सकता है। मानव एक-आयामी नहीं है, लेकिन विशिष्टताओं से दैवीय अनुपात परे, हम सभी अलग-अलग गतिविधियों को विकसित कर सकते हैं: "मैं एक गायक के रूप में आपके चेहरे को नहीं जानता था", "वह एक अभिन्न और बहुत प्रतिभाशाली कलाकार है, लेकिन मुझे सबसे ज्यादा पसंद क्या है जब उसका मुखर विस्फोट होता है" कॉमेडियनों में अविश्वास । "
यह समझा जाता है कि जब कोई व्यक्ति कई पहलुओं को विकसित कर सकता है, तो वह अपनी पूरी क्षमता का शोषण कर रहा है। विभिन्न उन लोगों के मामले हैं जो हमेशा एक ही पहलू दिखाने के लिए मजबूर होते हैं और अपनी विभिन्न क्षमताओं को दिखाने के लिए सीमित होते हैं।