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प्रवृत्ति निरंतरता

प्रवृत्ति निरंतरता
इससे न केवल प्राकृतिक विज्ञान कार्यक्रम गतिविधियों के लिए समर्थन बढ़ेगा, बल्कि पर्यावरण के नए सिरे से स्थानीय नेतृत्व के माध्यम से स्वयं समुदायों के लचीलेपन में भी योगदान मिलेगा ।

प्रेरणा के सिद्धांत की मुख्य जानकारी Key Information of The Theory of Motivation

1) मूल प्रवृत्ति का सिद्धांत : मनोविज्ञान के क्षेत्र में अभिप्रेरणा को प्रथम वैज्ञानिक सिद्धांत माना जाता है । इसके अंतर्गत मैक्डूगल, बर्ट आदि मनोवैज्ञानिकों ने यह अवधारणा प्रस्तुत की व्यक्ति में जन्म से ही व्यवहार की कुछ विशिष्ट प्रवृतिया विघामान रहती हैं तथा उनके क्रियाशील होने पर व्यक्ति उस प्रकार का व्यवहार करता है , जिसके करने से उसकी उस प्रवृति की संतुष्टि होती है । मैक्डूगल ने कहा कि - ' जन्मजात प्रवृतियां मानव व्यवहार का उदगम होती हैं। ' फ्रायड ने अपने मनोविश्लेषण सिद्धांत में दो मूल प्रवृत्तियों ( जीवन व मृत्यु की मूल प्रवृति ) का वर्णन किया है। सामान्य व्यक्ति में जीवन तथा मृत्यु प्रवृति समान मात्रा में रहकर एक दूसरे को संतुलित रखती है।इस मूल - प्रवृत्ति को उन्होंने थेनाटॉस नाम दिया है। साथ ही अगर आप भी इस पात्रता परीक्षा में शामिल होने जा रहे हैं और इसमें सफल होकर शिक्षक बनने के अपने सपने को साकार करना चाहते हैं, तो आपको तुरंत इसकी बेहतर तैयारी के लिए सफलता द्वारा चलाए जा रहे CTET टीचिंग चैंपियन बैच- Join Now से जुड़ जाना चाहिए।

संयुक्त राष्ट्र महासागर दशक के दौरान प्रवृत्ति निरंतरता तटीय लचीलापन बढ़ाना

सतत विकास के लिए महासागर विज्ञान के 2021-2030 संयुक्त राष्ट्र दशक ("महासागर दशक") ने मानव और पारिस्थितिकी प्रणालियों दोनों के लिए तटीय लचीलापन बढ़ाने के लिए महासागर वैज्ञानिकों, सरकारों और उद्योग की वैश्विक साझेदारियों द्वारा विकसित तीन परिवर्तनकारी कार्यक्रमों का समर्थन किया है ।

मुद्दा

वैश्विक आबादी का ४०% से अधिक तट के 100km के भीतर रहता है, और इस प्रवृत्ति में वृद्धि हो रही है । आने वाले दशकों में तटीय निवासियों के बहुमत तेजी से घनी आबादी वाले शहरी क्षेत्रों में रहते हैं, जो पहले से ही समुद्र के बढ़ते स्तर, बढ़ तूफान तीव्रता और आवृत्ति, और ऊंचा तापमान के अधीन हैं । इसके परिणाम बाढ़ से होने वाले नुकसान, कटाव, बुनियादी ढांचे की क्षति और पर्यावरण यी खतरों में वृद्धि के कारण सामाजिक और स्वास्थ्य सेवाओं पर अधिक दबाव होंगे ।

Sharad Pawar Comment on Rahul Gandhi: ओबामा के बाद अब राहुल गांधी पर शरद पवार का कमेंट, बोले- राहुल में अभी.

Published: December 4, 2020 12:41 AM IST

NCP chief Sharad Pawar

पुणे: पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी की भारतीय राजनीति में कार्यशैली को लेकर अक्सर कई तरह की बातें होती रहती हैं. हाल ही में पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की टिप्पणी के बाद राहुल की प्रवृत्ति और उनेक तौर तरीकों को लेकर खूब बाते कहीं गईं. अब एक बार फिर से राहुल को लेकर बहस छिड़ गई है. इस बार उनके बारे में किसी और पार्टी के नेता ने नहीं बल्कि में एनसीपी चीफ शरद पवार ने बड़ी बात प्रवृत्ति निरंतरता कही है.

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राष्ट्रीय नेता के रूप में राहुल गांधी की साख पर टिप्पणी करते हुए राकांपा प्रमुख शरद पवार ने बृहस्पतिवार को कहा कि उनमें कुछ हद तक ‘निरंतरता’ की कमी लगती है. कांग्रेस के सहयोगी पवार ने हालांकि कांग्रेस नेता पर बराक ओबामा की टिप्पणियों को लेकर कड़ी आपत्ति जताई.

पवार का साक्षात्कार लोकमत मीडिया के अध्यक्ष और पूर्व सांसद विजय दर्डा ने किया. यह पूछे प्रवृत्ति निरंतरता जाने पर कि क्या देश राहुल गांधी को नेता मानने के लिए तैयार है, तो पवार ने कहा कि इस संबंध में कुछ सवाल हैं. उनमें निरंतरता की कमी लगती है.

ओबामा ने हाल ही में प्रकाशित अपने संस्मरण में कहा था कि कांग्रेस नेता शिक्षक को प्रभावित करने के लिए उस उत्सुक छात्र की तरह लगते हैं जिसमें विषय में महारत हासिल करने के लिए योग्यता और जुनून की कमी है . इस बारे में पूछे जाने पर पवार ने कहा कि यह जरूरी नहीं है प्रवृत्ति निरंतरता कि हम सभी के विचार को स्वीकार करें.

आरक्षण की वर्तमान प्रवृत्ति जाति व्यवस्था को मजबूत कर रही है: मद्रास हाईकोर्ट

मेडिकल कॉलेज की सीटों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा को लेकर डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के नागरिकों को इतना सशक्त किया जाए कि आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन हो.

मेडिकल कॉलेज की सीटों में ओबीसी के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा को लेकर डीएमके द्वारा दायर की गई याचिका पर सुनवाई के दौरान कोर्ट ने कहा कि अब समय आ गया है कि देश के नागरिकों को इतना सशक्त किया जाए कि आरक्षण व्यवस्था की जगह ‘मेरिट’ के आधार पर एडमिशन, नियुक्ति और प्रमोशन हो.

मद्रास हाईकोर्ट. (फोटो साभार: फेसबुक/@Chennaiungalkaiyil)

नई दिल्ली: मद्रास हाईकोर्ट ने बीते बुधवार (25 अगस्त) को कहा कि आरक्षण की वर्तमान प्रवृत्ति प्रवृत्ति निरंतरता जाति व्यवस्था को मजबूत कर रही है और ‘मेरिट’ के आधार पर अवसर दिए जाने चाहिए.

लाइव लॉ की रिपोर्ट के मुताबिक, मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और जस्टिस पीडी ऑडीकेसावालु की पीठ ने आरक्षण को लेकर ऐसी कई टिप्पणियां की.

कोर्ट द्रविड़ मुनेत्र कषगम (डीएमके) पार्टी द्वारा दायर उस अवमानना याचिका पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें मेडिकल कॉलेज की सीटों में अन्य पिछड़ा वर्ग के लिए 27 फीसदी आरक्षण की घोषणा के संबंध में केंद्र सरकार के खिलाफ कार्रवाई की मांग की गई थी. उच्च न्यायालय ने याचिका खारिज कर दी, लेकिन फुटनोट में आरक्षण प्रणाली पर टिप्पणियों को दर्ज किया.

नियंत्रण करने की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का पर्व है विजयादशमी

विजयादशमी, शक्ति का उत्सव। शक्ति भी कैसी, वह जो अन्याय का विरोध करे, जो कमजोर को सहारा दे। वह क्रूर न हो, बल्कि करुणा का सागर बने। पुरुषार्थ को आधार बनाकर मानवता का कल्याण करे ऐसी शक्ति। दरअसल शक्ति को सही दिशा देना ही विजयादशमी का पर्व है, उत्सव है और इसी में मंगल है। दरअसल शक्ति होना, सृष्टि की शुरुआत के साथ है। यह ऊर्जा के रूप में है मिली एक भौतिक इकाई है। यह वही प्रेरणा है जो बिगबैंग के जरिए ग्रहों-नक्षत्रों के बनने की वजह है। इसका दूसरा स्वरूप नियंत्रण का है। आदि काल से मनुष्य नियंत्रण की प्रवृत्ति रखता आया है। यही नियति किसी को देव बना देती है तो किसी को दानव। नियंत्रण की प्रवृत्ति को नियंत्रित कर लिया जाए तो व्यक्ति राम है, और इस प्रवृत्ति को खुला छोड़ कर खुद इसके अधीन हो जाना रावण होना है। राम-रावण युद्ध इन्हीं दो प्रवृत्तियों का युद्ध है। रावण का वध नियंत्रण से बाहर हो रही नियंत्रण की प्रवृत्ति को नियंत्रित करने का प्रतीक है। राम इस प्रवृत्ति के आधार हैं और विजयदशमी इसी आधार का पर्व है।
हर किसी में अच्छाई-बुराई होती है। इनका अनुपात अलग-अलग हो सकता है। भारत के सामान्य व्यक्ति की प्रश्नाकुलता के स्वर विजयादशमी में हैं जो हमारी धमनी और शिराओं में वास करते हैं। हमारी संकल्प-भावना के मूर्तिमंत रूप विजयादशमी में हैं। जब अन्याय हो तो उससे संघर्ष करने का भाव विजयादशमी में मिलता है। सामान्य को इकट्ठा करके संघर्ष करने की कला राम के पास है। सत्ता से दूर रहकर भी लोगों को अपना बना लेना कोई उनसे सीखे। इसे निभाना वह बखूबी जानते हैं। वह लंका पर राज नहीं करते। उनके विपरीत रावण एक ऐसा प्रतिनायक है, जो विद्वान है और प्रकृति पर ही नियंत्रण करने चला है। रावण से सीखने के लिए लक्ष्मण रावण की मृत्यु की घड़ी में सादर उसके पास जाते हैं। रावण विराट शक्ति और प्रतिभा का धनी था। उसकी शक्ति और प्रतिभा यदि स्त्री के आहरण में न खपती और मन विस्तार लिए होता तो शायद राम-रावण संघर्ष की दिशा कुछ और होती। खैर राम-रावण का एक अपराजेय समर आज भी जारी है। हमारे भीतर के प्रकाश और अंधकार का संघर्ष कभी खत्म ही नहीं होता। जैसे अंधकार में भी विशिष्ट क्षमताएं होती हैं वैसे ही रावण में भी बेहतरी कई बार देख सकते हैं। भारतीय मन किसी में केवल नकारात्मकता ही नहीं देखता, वह सकारात्मकता भी खोजता है या कहें कि खोज लेता है। शंबूक और सीता-निष्कासन के प्रसंग को भी लोक-समाज अपने नजरिये से देखता है।
महत्व यदि सत्ता, संपत्ति, कृत्रिम लोकप्रियता, धाक आदि के सहारे प्राप्त हुआ तो उसके कम हो जाने की संभावना अत्यधिक होती है। इसके उलट यदि अच्छाई मूल गुण-संपत्ति से बनी एवं बुनी हुई हो तो उसमें धुंधलापन आने की अधिक आशंका नहीं होती। राम का जो अर्जित गुण है, उसे मौलिक सृजनशीलता कह सकते हैं। आधुनिकतावाद ने औद्योगिक विकास, बुद्धिवाद एवं विज्ञान के वर्चस्व को प्रगति एवं सभ्यता के साथ जोड़ दिया था, जबकि उत्तर आधुनिकतावाद ने संस्कृति को एक के बजाय अनेक और केंद्रित के बजाय विकेंद्रित करार दिया। अभी देखें तो नए सिरे से अब संस्कृति विमर्श का मुद्दा बन रही है, जिसमें जड़ों की तलाश, अतीत एवं परंपरा के नए अवगाहन महत्वपूर्ण बनते जा रहे हैं। राम को भी नए सिरे से आविष्कृत करने के लिए उनको गहराई से समझना होगा जो ‘अन्य’ के रूप में रहे हैं और कई बार साहित्य एवं इतिहास से बाहर के माने जाते रहे हैं, जैसे-दस्यु, राक्षस एवं आदिजन। उनके साथ ही सीता, उर्मिला, मांडवी आदि को भी नए सिरे से देखना होगा। इतनी सारी अर्थ छवियों, दृष्टियों की संकुलता एवं बहुवचनात्मकता से सुसज्जित कथा हजारों साल से लोक-व्यवहार, आचार, स्मृति में रंगमयी ङिालमिलाहट से भारतीय समाज को रचती रही है। इसके अंदर ऐसी निरंतरता है जो जीवन का उत्सव बन जाए।
भारतीय संस्कृति में हमेशा से एक मध्यम या संतुलित सोच की मान्यता रही है। यहां अतिवाद को स्थान नहीं है। इसीलिए प्रतिपदा से दशमी तक के लिए ऐसी ऋतु चयनित है, जहां न शीत है न ग्रीष्म। जहां आंतरिक और बाहरी स्वच्छता पर बल है। यह रामकथा एक नहीं, सैकड़ों रूपों में है। रामायण में केवल एक पाठ नहीं, बल्कि सैकड़ों पाठ हैं। एक पाठ राम का तो अन्य पाठ सीता का। एक पाठ लक्ष्मण का तो अन्य पाठ उर्मिला का। राम, लक्ष्मण, भरत के अंतरसंबंध भी एक भिन्न कोटि का पाठ बनाते हैं।
रामायण, रामचरितमानस, अध्यात्म रामायण, साकेत, रामचंद्रिका, आनंद रामायण, बौद्ध रामायण आदि अनेक रामायण हैं। इन सभी में अलग-अलग दृष्टियां हैं। दृष्टियों की बहुलता वाली ऐसी विजयादशमी का विजय-पाठ अंतत: यदि सामान्य व्यक्ति की प्रेरक स्मृति की सुगंध से नहीं जुड़ा होता तो वह अर्थमय नहीं होता और हमारे भीतर-बाहर के चौक-चौबारे में मेला न बन जाता। एक ऐसा मेला, जहां हम स्वयं से मिलते हैं और लोक से भी। नायक से मिलते हैं और प्रतिनायक से भी। समय से मिलते हैं और भविष्य से भी। काव्य से मिलते हैं और महाकाव्य से भी। अंत से मिलते हैं और अनंत से भी। भाषा से मिलते हैं और भाषा से परे भी। हद से मिलते हैं और बेहद से भी।

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