सही दलाल का चयन

गिरदावरी की सही जांच होती तो शासन को नहीं लगता चूना
पत्थलगांव. शासन-प्रशासन की लाख कोशिश करने के बाद भी पूरी पारदर्शिता नहीं आ पा रही है, जिसके कारण धान खरीदी के दौरान हर वर्ष राज्य सरकार को अरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ता है। 1 नवंबर से राज्य शासन ने सोसायटियों में किसानो का धान खरीदी का फरमान जारी कर दिया है, जिसे देखते हुए सोसायटियों मे धान खरीदी करने की तैयारियां भी शुरू हो गई है, पर धान खरीदी में सोसायटी प्रबंधक एवं दलालों की मिली-भगत पर जिला प्रशासन रोक नहीं लगा पाता है तो इस बार भी राज्य शासन को धान खरीदी मे अरबों रुपए का नुकसान उठाना पड़ सकता है। दरअसल पूरे पत्थलगांव क्षेत्र में प्रत्येक वर्ष सोसायटी प्रबंधक एवं दलालों की मिली-भगत से दूसरे राज्यों के धान की खरीदी किसानो के धान से अधिक की जाती है, इस कार्य में दलाल पटवारियों द्वारा तैयार गिरदावरी का भरपूर लाभ उठाते हैं। यदि किसानो की गिरदावरी की जांच सही ढंग से की जाती तो दलालों के मार्फत आने वाले धान की बिकवाली पर रोक लगाया जा सकता था। प्रत्येक वर्ष राजस्व अमले द्वारा किसानो की गिरदावरी तैयार की जाती है, पर तैयार गिरदावली के मुताबिक किसान अपने खेतो में फसल नहीं उगा पाते, अधिकांश किसान पर्चा पट्टा बनवाने के बाद भी खेतों मे खेती नहीं करते, जिसका भरपूर लाभ धान खरीदी के दौरान दलाल उठाते हैं, जो खेती ना करने वाले किसानो के पर्चे पट्टे पर दूसरे राज्यों का धान यहां की सोसायटी में बेचकर शासन को करोड़ो रुपए का नुकसान पहुंचाते हैं। इस कार्य में दलालो के साथ-साथ सोसायटी प्रबंधकों की भी अहम भूमिका मानी जाती है, यही कारण है कि शासन धान खरीदी कर लाभ कमाता या ना कमाता हो, पर दो तीन माह की धान खरीदी से अनेक सोसायटी के प्रबंधक करोड़ो की बेनामी संपत्ति के मालिक बन चुके हैं।
बारदाने के खेल में भी माहिर हैं प्रबंधक : पुष्ट जानकारी के अनुसार सोसायटी के प्रबंधक दलालों से धान खरीदी के दौरान शासकीय बोरो मे भी जमकर हेरफेर करते हैं, अनेक बार सोसायटी में आने वाले बोरो मे दलालों का धान सोसायटियों में बिकते देखा गया है। पिछले वर्ष भी एक सोसायटी के शासकीय बोरो में दलालों का धान बिकने पहुंचा था, जिसकी शिकायत के बाद जांच भी हुई पर जांच बेनतीजा निकली। बताया जाता है कि सोसायटी से राईस मिलों में जाने वाले धान की भी अनेक बार दोबारा बिक्री कर दी जाती है, इस पूरे खेल में प्रबंधक एवं बिचौलियों के बीच धान मे मिलने वाले बोनस का खेल बताया जाता है, जो कहीं न कहीं राज्य सरकार का ही नुकसान है।
गिरदावरी व खरीदी के आंकड़ों में अंतर : क्षेत्र मे एक दर्जन से भी अधिक सोसायटी धान की खरीदी करती है, जहां यदि प्रशासन अपनी सर्तकता दिखाकर दलालों के मार्फत आने वाले धान पर रोक लगाता है तो राजस्व अमले द्वारा तैयार गिरदावरी एवं खरीदी होने वाले धान के आंकड़े का फर्क स्वत: ही सामने आ जाएगा। बताया जाता है कि पिछले कुछ सालों से धान पैदा करने वाले किसानो की संख्या बढ़ती जा रही है, एक सोसायटी के आंकड़े के मुताबिक हर वर्ष 10 प्रतिशत किसान के साथ उनका रकबा भी सही दलाल का चयन बढ़ रहा है। पत्थलगांव सोसायटी की बात करें तो यहा 20 हजार क्विंटल धान की खरीदी प्रत्येक वर्ष बढ़ रही है, ऐसे में राजस्व अमले द्वारा तैयार गिरदावरी की जांच के साथ-साथ दलाल एवं धान से जुड़ी व्यवस्था सही दलाल का चयन बिगाडऩे वाले अन्य संबंधित लोगों ंपर भी सख्ती की आवश्यकता है।
ग्रामीण बैंक चल रहा दलालों के सहारे,कर्मचारी मनमानी पर उतारू
प्रतापगढ़-:-(प्रमोदश्रीवास्तव)बड़ौदा उत्तर-प्रदेश ग्रामीण बैंक शाखा जामताली के बैंक कर्मचारी मनमानी पर उतारू है।अनपढ़ गरीब मजदूरों को बैंक में लेन देन या किसी भी कार्य करने के लिये वहाँ बैठे दलालों का सहारा लेना पड़ता है।वहाँ बैठे दलालों के बगैर अनपढ़ मजदूरों का कोई भी काम संभव नही है और दलाल कार्य को कराने के बदले बिचौलिया के रूप में दलाली लेते है।आज एक गरीब मजदूर जिसका चयन सरकार के आवास योजना में हुआ है,वह गरीब मजदूर जब अपनी पासबुक बदलवाने गया तो पासबुक बदलने के नाम पर दो सौ रूपये की मांग की गयी।पैसा न देने पर बैंक मैनेजर,कर्मचारी व बाहर बैठे हुए दलाल बहानेबाजी करने लगते है।दलाल के माध्यम से पासबुक बनवाने न जाने पर बैंक कर्मचारियों द्वारा प्रिंट मशीन की खराबी का बहाना किया जाता है।वहाँ बैठे दलालों का कहना रहता है कि अगर पैसा दे दो तो पासबुक दूसरी जगह से प्रिंट करवा कर बनवा दें।दिन भर मजदूरी करके पेट भरने वाले को बैंक कर्मचारी या दलाल को घूस न देने के एवज में गरीब मजदूरों को अपने सही कार्यो के लिये बार बार बैंक का चक्कर काटना पड़ता है।.
भाजपा की दलाली में हास्यास्पद हो गया है चुनाव आयोग
भारत में चुनाव आयोग की निर्थकता इससे ज्यादा और क्या हो सकती है कि कर्नाटक में होनेवाली विधानसभा चुनाव के तिथि की घोषणा चुनाव आयोग के बजाय भाजपा का आई टी सेल प्रभारी करता है. इसी के साथ भारत में चुनाव आयोग भाजपा के आदेशों को पालन करने वाली एक संस्था मात्र रह गई है, जिसकी विश्वसनियता आम आदमी के बीच शून्य हो गई है.
मौजूदा चुनाव आयोग ठीक से काम नहीं कर रहा है. चाहे आनन-फानन में आप के 20 विधायकों को अयोग्य करार देने का मामला हो, जिसमें खुद राष्ट्रपति भाजपा के तलबाचाटु साबित हो चुके हैं, ईवीएम का मसला हो या हिमाचल और गुजरात के चुनाव के तारीखों की घोषणा करने में पीएम की रैली और घोषणाओं के इंतजार करने का मामला हो, चुनाव आयोग की भूमिका न केवल भाजपा के दलाल की ही बनी वरन् वे मजाक भी बन गये हैं.
चुनाव आयोग की असली पहचान देश के सामने तब आई जब मुख्य चुनाव आयोग टी. एन. शेषण ने बूथ लूटे जाने वाले चुनाव को अपनी कड़ी मेहनत और कठोर अनुशासन के बल पर शानदार तरीक़े से चुनाव सम्पन्न कराया. तभी पहली बार देश ने चुनाव आयोग की महत्ता को समझा. परन्तु उनके जाने के बाद धीरे-धीरे चुनाव आयोग अपनी गरिमा को खोता चला गया. आज आलम यह बन गई है कि चुनाव आयोग देश में एक हास्यास्पद संस्था का रुप ग्रहण कर लिया है, जिसके आड़ में चुनाव प्रक्रिया की भी कोई महत्ता नहीं रह गई है.
देश में तथाकथित लोकतंत्र को जिंदा रखने के लिए दिखावटी ही सही, एक चुनाव प्रणाली की स्थापना की गई है, जिसे हर बार देश के तकरीबन 50 से 60% तक मतदाता औचित्यहीन मानकर बहिष्कार कर देता है. बांकि के डले वोटों के आधार पर सरकार का चयन किया जाता है, जिसका एकमात्र लक्ष्य देश की मेहनतकश जनता के खून-पसीने की कमाई को देश के दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों के हाथों लुटवाना होता है, जिस लूट में यह सरकार और उसकी मशीनरी अपना हिस्सा पाती है. सरकार और उसकी मशीनरी इस हिस्सा लेने के एवज में दलाल पूंजीपतियों और साम्राज्यवादियों की आम जनता के किसी भी प्रतिरोध से पूरी सुरक्षा की गारंटी देती है.
देश की चुनावी प्रणाली शासक के उस वर्ग का चयन करती है जो जनता को सबसे ज्यादा मूर्ख बनाकर शोषको के शोषण को निर्विध्न जारी रखने की गारंटी देती है. परन्तु अब जब इसी चुनाव प्रणाली के माध्यम से लोगों के ऐसे ईमानदार समूह चुनकर आने लगे हैं, जो वास्तव में जनता की बुनियादी सुविधाओं यथा, रोटी, शिक्षा, चिकित्सा आदि जैसै सवालों पर गंभीरतापूर्वक काम करने लगे हैं, शोषण की तेज रफ्तार के विरूद्ध खड़े होने लगे हैं, तब देश के दलाल पूंजीपतियों के कान खड़े होने लगे हैं. वे अपने शोषण के व्यवस्था की सुरक्षा को लेकर चिंतित होने लगे हैं.
यही कारण है कि केन्द्र की मोदी सरकार के वक्त में देश के दलाल पूंजीपति जहां अपनी पूंजी सहित और देश के मेहनतकश जनता की बैंकों में जमा हजारों-लाखों करोड़ रुपये बकायदा बैंकोंं से चुरा कर विदेश भाग रहे हैं और यह सरकार उसे भगाने में पूरी मदद कर रही है तो वही साम्राज्यवादी भी न केवल अपनी पूंजी के निवेश को ही कम रहे हैं, वरन् अपनी पूंजी भी समेट रहे हैं. एक आंकड़े बताते हैं कि मोदी सरकार के इन चार सालों में तकरीबन 23 हजार दलाल पूंजीपति देश के लाखों करोड़ की धनराशि सीधे बैंकों से लेकर भाग चुकी है, और अनेकों भागने की कतार में लगे हैं.
ऐसे वक्त में शासक वर्ग का यह दलाल तबका जो आज केन्द्र की कुर्सी पर बैठा है, शोषण और बैंकों के द्वारा जारी इस क्रूर खेल को बरकरार रखने और सत्ता पर अपनी निरंतरता बनाये रखने हेतु चुनाव प्रणाली को ही निर्रथक बना दिया है, ताकि जनता के हितों की हिफाजत करने की सोच रखने वाले ईमानदार लोग चुनकर न आ जाये.
मौजूदा सरकार के काल में चुनाव आयोग ईमानदार और जनता के हितों में काम करने वाले समूहों को रोकने के लिए पहले से भी ज्यादा मुस्तैदी के साथ लगा हुआ है. पहले जहां यह काम बूथों को लूटकर अंजाम दिया जाता था और अब यह काम सीधे ईवीएम जैसे मशीनों को ही हैक कर किया जा रहा है. बीच के थोड़े से काल में टी. एन. शेषण के प्रभाव के कारण पड़ने वाले व्यवधानों को पूरी तरह खत्म कर दिया गया है. परन्तु देश की आम जनता जागरूक हो रही है, इसका परिणाम आने वाले वक्त में बेहद खूबसूरत दिखेगा, इसकी उम्मीद की जा सकती है.
रिश्वतखोर पुलिसकर्मी 35,000 पहले डकार गया, 15,000 की फिर से कर दी मांग, एसीबी सीकर ने दबोच लिया
पाटन,(निंस)। नीमकाथाना विधानसभा में कोतवाली थाने का एक हेड कांस्टेबल को रिश्वतखोरी मामले में एसीबी सीकर ने धर दबोचा उसके दलाल को भी गिरफ्तार कर लिया गया है। सीकर डिप्टी एसीबी के जाकिर अख्तर ने संवाददाता को बताया कि आरोपी हेड कांस्टेबल अनिल कुमार मारपीट के क्रॉस केस मामले में मदद के नाम पर परिवादी संजय कुमार गांव सिरोही से बार बार रुपयों की मांग दलाल बोदूराम के जरिये कर रहा था। हाल में उसने 15 हजार रुपए की मांग की थी। जिससे तंग आकर परिवादी संजय कुमार ने उसकी शिकायत भ्रष्टाचार निरोधक ब्यूरो में कर दी। जिसका एसीबी ने सत्यापन करवाया तो मामला सही निकला। हेड कांस्टेबल से दस हजार रुपए में सौदा तय होने पर 5 हजार रुपए की पहली किश्त उसे सत्यापन के दौरान ही सौंप दी गई। जबकि दूसरी किश्त के 5 हजार रुपए रविवार को कोतवाली थाने में ही दिया जाना तय किया गया। जिसे लेते हुए एसीबी ने हेड कांस्टेबल अनिल को रंगे सही दलाल का चयन हाथों धर लिया। एसीबी के डिप्टी जाकिर अख्तर के साथ उनकी टीम में इंस्पेक्टर सुरेश कुमार, एएसआई रोहिताश कुमार, राजेंद्र कुमार, रामनिवास, मूलचंद, दिलीप, कैलाश, कैलाश चालक सुरेंद्र कुमार शामिल रहे। रिश्वत के अपराधी को एसीबी ने हिरासत में ले लिया है सीकर ले जाने की बात कही है। यह पुलिसकर्मी इससे पहले पाटन थाने में कार्यरत थे।
पहले तीन बार में 35 हजार पहले ले चुका था
एसीबी के डिप्टी जाकिर अख्तर ने बताया कि नीमकाथाना कोतवाली में दो पक्षों में मारपीट का मामला दर्ज हुआ था। मामले में एक पक्ष के संजय कुमार की मदद करने की एवज में हेड कांस्टेबल ने उससे पहले उससे करीब 25 हजार रुपए वसूल लिए। उसके दो बार में 10000 हजार वसूले। इसके बाद भी 15 हजार रुपए की मांग ओर की। इसमें बोदूराम नाम का दलाल बिचौलिये का काम कर रहा था। इस पर संजय ने इसकी शिकायत एसीबी कार्यालय में कर दी। जो सत्यापन में सही पाए जाने पर एसीबी ने आरोपी को 5000 रुपए में अपने जाल में फंसा लिया।